29 जुलाई 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 की मंजूरी दी गई। यह 21वीं सदी की भारत की पहली शिक्षा नीति है तथा पुरानी शिक्षा नीति-1986 के 34 वर्ष बाद लागू हुई है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत विभिन्न उद्देश्यों जैसे शिक्षा में समानता, गुणवत्ता, छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार के द्वारा उनमें कौशल एवं ज्ञान का विकास करना है, को ध्यान में रखा गया है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ शिक्षकों से संबंधित विभिन्न सुधार लाने का प्रयास किया गया है जैसे:- शिक्षकों की भर्ती व पदोन्नति अब उनकी योग्यता एवं कार्य प्रदर्शन के आंकलन पर आधारित होगी। शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा 2022 तक राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक (एनपीएसटी) लागू किया जाएगा। प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक-छात्र अनुपात को 30:1 से कम तथा सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित बच्चों वाले विद्यालयों में 25:1 से कम किया जाएगा। प्रत्येक शिक्षक को अपने व्यावसायिक विकास, नवाचार और स्वयं में सुधार करने हेतु प्रत्येक वर्ष 50 घंटों का सतत व्यवसायिक विकास कार्यक्रम (सीपीडी) में भाग लेना होगा। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा ( ईसीसीई) द्वारा आंगनबाड़ी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए डिप्लोमा कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जिसकी न्यूनतम योग्यता 10+2 होगी। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफटीई) का विकास किया जाएगा। शिक्षकों के लिए विद्यालयों में शिक्षण हेतु न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत B.Ed. डिग्री का होना जरूरी किया जाएगा। अस्थाई शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती पर जोर दिया जाएगा। शोध कार्य या पी.एचडी. कर रहे छात्रों को अपने विषय से संबंधित एक क्रेडिट कोर्स करना आवश्यक होगा, ताकि भविष्य में वे उसका व्यावहारिक उपयोग कर सकें, जिसे वे स्वयं/दीक्षा पोर्टल से जाकर कर सकते हैं। इस प्रकार नवीन शिक्षा नीति-2020, भारतीय शिक्षा को एक नई दिशा में ले जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सराहनीय प्रयास है।
शेफाली मेंदीरत्ता,
सहायक प्राध्यापक,
समाजशास्त्र।
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