3 मई, 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस'
"तेरा निज़ाम है, सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है, इस बहर के लिए। (दुष्यंत कुमार)
इतिहास गवाह है कि जब-जब पत्रकारिता सरकार के विरुद्ध मुखर होती है, तब तब प्रेस कीआज़ादी पर खतरा मंडराने लगता है। अभी तक की गई तमाम कोशिशों के बावजूद भी मीडिया न तो पूरी तरीके से स्वतंत्र है और न ही निष्पक्ष। यद्यपि मीडिया की आजादी के लिए तमाम देशों में तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन वर्तमान हालत को देखते हुए लगता है कि अभी दिल्ली दूर है।
वस्तुतः प्रेस की स्वतंत्रता वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत प्रिंट, टेलीविजन और वर्तमान समय में लोकप्रिय होते जा रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्लेटफार्म, जो जनता तक सूचनाएं पहुंचाते हैं, वे सरकार की निगरानी और गिरफ्त से मुक्त रहे, सत्ता की धौंस और पूंजीवाद की आंच से दूर रहें ताकि सत्य का अन्वेषण हो सके। प्रश्न तो यह है कि आज हम जिस मीडिया को मुखर होकर टी.वी. पर ऊंचे ऊंचे स्वरों में बहस करते देख रहे हैं, अखबार की सुर्खियों में कलम की जो स्याही पढ़ रहे हैं, क्या वह वास्तव में सत्ता और पूंजीवादी शिकंजे से बाहर हैं? सच तो यह है कि मीडिया के भी आज अपने अपने खेमें बन गए हैं। बड़े चातुर्य के साथ वे प्रेस, जिसे प्रजातंत्र का चौथा पाया कहा जाता है,की स्वतंत्रता से खेल रहे हैं। उनकी पत्रकारिता के छिपे एजेंडे हैं। वे पत्रकार रह ही नहीं जाते। अपने आकाओं के प्रवक्ता मात्र बन कर रह जाते हैं। हाँ कुछ स्वतंत्र सच्चे पत्रकार हैं, तो वे साधनों के अभाव में अपने ही अस्तित्व की लड़ाई से उबर नहीं पाते और इन तेज तर्रार नक्कारों के बीच उनकी आवाज तूती सी पिपियाती रह जाती है। प्रेस की आजादी खुद प्रेस ही निगलती जा रही है।बाढ़ खेत को ही चुगती जा रही है। हम भली भांति जानते हैं कि स्वतंत्रता की कीमत शाश्वत सतर्कता ही है और यह शाश्वत सतर्कता केवल स्वतंत्र, निष्पक्ष और बेबाक प्रेस या मीडिया नामक संस्था ही प्रदान कर सकती हैं। दूसरे शब्दों में यदि हमको मुक्त और स्वतंत्र जीवन जीना है, तो यह सुनिश्चित करना मीडिया का काम है कि उन लोगों पर नजर रखें, जिनके हाथों में आम जन की स्वतंत्रता निहित है,शासन की सत्ता निहित है।
माना जाता है कि सफल लोकतंत्र के लिए ये चार ठोस आवश्यकताएं हैं- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा, नागरिकों की सत्ता में भागीदारी और कानून के समक्ष समानता, पर सच कहूं तो प्रेस की स्वतंत्रता के बिना यह सब झूठ है, फरेब है, केवल एक मृग मरीचिका। लोकतंत्र तभी बचेगा जब प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता बचेगी, क्योंकि लोकतंत्र अपने ऐसे नागरिकों पर निर्भर करता है, जो अच्छी तरीके से सूचित हों, जिससे वे अपने संवैधानिक अधिकार और कर्त्तव्यों को जान सकें और अपने मताधिकार का प्रयोग कर प्रतिनिधियों का उचित चुनाव कर सकें, पर एक साधारण नागरिक के लिए यह असंभव है कि वह ऐसी जानकारी खुद अपने साधनों से जुटा सके। ऐसे में प्रेस ही वह संस्था है, जो सच्चाई की तह तक जाकर तथ्य खोजे औऱ सूचनाओं को सत्यापित करके प्रचारित करे, जिससे लोगों को अपने राजनीतिक निर्णय लेने में मदद मिले। इस प्रकार प्रेस एक लोकतांत्रिक सरकार के कुशल कामकाज के लिए न केवल शक्तिशाली उपकरण बन जाती है, वरन तथ्यों की सत्यापित रिपोर्टिंग कर सरकार की निरंकुशता पर भी अंकुश स्थापित करती है। वर्तमान समय में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तथा मीडिया के क्षेत्र में सोशल मीडिया के नए स्वरूप के परिणामस्वरूप सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है। ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता के सामने महत्त्वपूर्ण चुनौती और अनेक यक्ष प्रश्न आ खड़े हुए हैं।
कृपया मीडिया कर्मी बुरा न मानें इस दिवस का उद्देश्य प्रेस की आजादी के महत्त्व के प्रति जागरूकता फैलाना है. साथ ही ये दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता की बात करता है, अतः मुझे भी आज 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' पर वाक और अभिव्यक्ति की आजादी दें। मीडिया ने जहाँ जनता को निर्भीकता पूर्वक जागरूक करने, भ्रष्टाचार को उजागर करने, सत्ता पर तार्किक नियंत्रण एवं जनहित कार्यों की अभिवृद्धि में योगदान दिया है, वहीं लालच, भय, द्वेष, स्पर्द्धा, दुर्भावना एवं राजनैतिक कुचक्र के जाल में फंसकर अपनी भूमिका को कलंकित भी किया है। व्यक्तिगत या संस्थागत निहित स्वार्थों के लिए पीत पत्रकारिता को अपनाया है, ब्लैकमेल द्वारा निरीह लोगों का शोषण किया है, चटपटी खबरों को छापकर न केवल सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का काक प्रयास किया है, साथ ही सांस्कृतिक पतन का दलदल भी तैयार किया है। खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करना, दंगे भड़काने वाली खबरें सुर्खियों में प्रकाशित करना, घटनाओं एवं कथनों को द्विअर्थी रूप प्रदान करना, भय या लालच में सत्तारूढ़ दल की चापलूसी करना, अनावश्यक रूप से किसी की प्रशंसा और और किसी दूसरे की आलोचना करना, दुर्घटना एवं संवेदनशील मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, ईमानदारी, नैतिकता, कर्त्तव्यनिष्ठा और साहस से संबंधित खबरों को नजरअंदाज कर अपनी टी आर पी बढ़ाने में लगा मीडिया अपनी आवाज को नीलाम करता जा रहा है। प्रेस को अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखते हुए ,अपनी पवित्रता निष्पक्षता को बचाकर जनता का विश्वास जीतना होगा। प्रेस को समझना होगा कि वह एक ऐसा उपकरण है, जो अप्रत्यक्ष रूप से उन सभी अधिकारों की रक्षा करता है, जो लोकतंत्र को निरापद बनाते हैं। इस प्रकार जहाँ प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना लोगों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना है, वहीं आज प्रेस को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उश्रृंखलता पर नैतिकता और स्वानुशासन का शासन मानना ही होगा।
'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' पर प्रेस की आजादी के महत्त्व के लिए दुनिया को आगाह करने वाला यह दिन, जो हमको बताता है कि लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है, पर विश्व की तमाम मीडिया को अंत में मैं इन्हीं शब्दों के साथ शुभकामनाएं देना चाहूंगी कि-
"शक्ति का तू स्रोत है, वाणी में तेरी ओज है,
लोक के इस तंत्र की,
तू इक महान खोज है।"
बिना डरे बिना गिरे
कलम को हाथ लिए
तू साबित कर खुद को
कि तू स्वच्छ सर्वोच्च है।
डॉ. मधु गुप्ता
सह आचार्य,
हिंदी विभाग।
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