विश्व तम्बाकू निषेध दिवस


शेफाली मेंदीरत्ता

सहायक प्राध्यापक 

समाजशास्त्र 

प्रत्येक वर्ष 31 मई को WHO द्वारा विश्व तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता। लगभग विश्व के सभी देशों में इस दिन विभिन्न कार्यक्रम, योजनाएँ आदि आयोजित की जाती हैं। किन्तु विडम्बना यह हैं कि यह भी मात्र दिखावे के रूप में ही रह गया हैं। क्योंकि जो लोग इस तरह के व्यसनों के आदी हैं वे इन सबसे कोई शिक्षा ग्रहण नहीं करते हैं। उनको पता होने के बावजूद कि तम्बाकू का सेवन स्वास्थय के लिए हानिकारक हैं और यह कैंसर का रूप लेकर जानलेवा भी सिद्ध हो सकता हैं, वे फिर भी इसका सेवन करते रहते हैं। इसका सेवन करने वालों को यदि समझाने का प्रयास किया भी जाता हैं तो वे समझने वाले को ही बुरा भला कहने लगते हैं। उनके अनुसार तो किसी भी प्रकार का नशा करना एक उच्च जीवन शैली का अभिन्न अंग हैं और जो लोग नशा नहीं करते हैं वह तो अपना जीवन यूँ ही बर्बाद कर रहे हैं। 

ऐसे व्यक्ति न केवल स्वयं की शारीरिक, आर्थिक, मानसिक हानि करते हैं बल्कि दूसरों के स्वास्थय से भी खिलवाड़ करते हैं। जब व्यक्ति नशे का आदी हो जाता हैं तो धीरे धीरे उसके सोचने, समझने व कार्य करने की क्षमताओं का हांस होने लगता हैं। कई बार उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ जाता हैं। इसके साथ ही कई प्रकार की बीमारियाँ उसे घेर लेती हैं जिनका इलाज करवाने में उसकी सारी जमा पूँजी भी खर्च हो जाती हैं। उसके परिवार के सदस्य भी इन सबके कारण मानसिक तनाव से गुजरते हैं और कई बार तो बच्चे भी बड़ों को देख कर इस प्रकार के व्यसनों के आदी हो जाते हैं। 

तो आइये आज हम विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर सब मिलकर यह प्रण करें कि “न तो हम स्वयं तम्बाकू आदि व्यसनों का शिकार होंगे और न ही किसी दूसरे को होने देंगे और यदि कोई इससे बाहर निकलना चाहता है तो उसमें उसका पूरा साथ देंगे।“ 

Use of Indian species as herbal mediciene in india :A review




Abstract

Indian spices have a history which is more than 7000 years old. Indian spices play a leading role in Indian national economy. The Rig-Veda and the Yajurveda mention about the use of turmeric for treating Jaundice and leprocy.Ayurveda describe the use of spices and their importance with various medicinal properties. According to the latest report, there are 109 species grown in different part of the world,of which 83 of these are grown in India,Thus from time immemorial ,India has been called “ the land of spices”

         Species in India were not only used in food they were also used to curve ailments. Indian species are rich in minerals, dietary polyphones and flavanoids compounds with strong antioxidants and antiinflamatory benefits. Species like ginger ,turmeric,fenugreek,fennels,clove,coriander ,cardamon, pepper,garlic ,ajwain  are used as medicines from ancient time .Spices are natural plants or vegetable products or a mixture of both which posses preservatives, antibiotic and anticeptic property. They are useful in fighting germs, have healing properties of wounds, aids digestion and boost immune function 

          Species as herbal medicines are commonly used for treating both infectious and non-infectious disease, on the other hand, present days antimicrobial used to treat bacterial infection caused by multiple drug resistance (MDR) total drug resistant (TDR) strains are more common and world is looking for alternative therapies to treat such infections.Herbal medicines are considered as better alternative for existing and emerging antimicrobial drug resistant (ADR) pathogens.

DR SONALIKA SINGH 

Department of zoology                                   Maheshwari Girls P.G  college 


 

 

 

।।आतंकवाद विरोधी दिवस।।

।।आतंकवाद विरोधी दिवस।।

न हम वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आतंकवादी हमले को भूल सकते और न ही 26/11 मुंबई हमला भुलाया जा सकता है। वास्तव में आतंकवाद आतंवादियों के खूंखार कृत्यों द्वारा लोगों के बीच जान का नुकसान और लोगों में मौत का डर पैदा करने का दुस्साहसिक प्रयास है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह मानव के अधिकारों पर हमला है। 

किसी ने सही कहा है “Terrorists have no religion. They only understand the language of devastation".

आतंकवाद के बारे में युवाओं को ज्ञान प्रदान करने, मानव पीड़ा और जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूक करने के लिए हर साल 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाता है। यह दिन लोगों को आतंकवाद विरोधी सामाजिक कार्य के लिए भी जागरूक करता है। राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की आधिकारिक घोषणा 21 मई, 1991 को भारत के सातवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद की गई थी। वी.पी. सिंह सरकार ने 21 मई को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। तभी से यह दिवस देश भर में आतंकवाद के विरुद्ध जागरूकता दिवाद के रूप में मनाया जाता है, साथ ही, इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों इत्यादि में आतंकवाद विरोधी प्रतिज्ञा ली जाती है।

आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने के उद्देश्य-

- शांति और मानवता का संदेश फैलाना।

- आतंकवादी समूहों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना।

- लोगों के बीच एकता का बीजारोपण कर, लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देना।

- साथ ही, युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना, ताकि वे विभिन्न आतंकवादी समूहों में शामिल न हों।

- देश में आतंकवाद, हिंसा, लोगों, समाज और पूरे देश पर इसके खतरनाक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना।

इस प्रकार यह आतंकवाद विरोधी दिवस उस वहशत और दहशत के विरुद्ध क्रोध व्यक्त कर, मानवता के साथ एकजुटता दिखाता है।  

सीखने के लिए सर्वोत्तम वातावरण एवं छात्रों को सहयोग


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के तहत सीखने के लिए सर्वोत्तम वातावरण और छात्रों के सहयोग पर बल दिया गया है। जिसमें पाठ्यक्रम, आकर्षक शिक्षण, निरंतर रचनात्मक मूल्यांकन और छात्रों का सहयोग आवश्यक है।

रचनात्मक को सुनिश्चित करने के लिए संस्थानों और संगठनों को पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि और आंकलन आदि स्वायत्ता देनी होगी।

सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को उच्च शिक्षा तक सफलता पूर्वक पहुंचने के लिए विश्वविद्यालय और कॉलेज द्वारा उच्चतर गुणवत्ता युक्त सहायता केंद्र खोलने की आवश्यकता है।

ओडीएल और ऑनलाइन शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण उच्चतर शिक्षा का  एक प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है। इसकी पूरी क्षमता का लाभ लेने के लिए ओडीएल को CV विस्तार की दिशा में ठोस, साक्ष्य आधारित प्रयासों के माध्यम से नवीनीकृत किया जाएगा, साथ ही इसके लिए निर्धारित स्पष्ट मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा।

विभिन्न पहलों से भारत में पढ़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या भी बढ़ेगी और यह भारत में रह रहे उन छात्रों को ऐसे और अवसर दिलाएगी जो विदेश के संस्थानों में शोध करने, क्रेडिट स्थानांतरित करने या इसके बाहर शोध करने की इच्छा रखते है।

भारत को  उच्चतर शिक्षा प्रदान करने वाले वैश्विक अध्ययन के गंतव्य के रूप में बढ़ावा दिया जाएगा, जिससे इसे विश्व गुरु के रूप में अपनी भूमिका को बहाल करने में मदद मिलेगी ।

छात्र, शिक्षा प्रणाली में प्रमुख हितधारक हैं। उच्चतर गुणवत्तायुक्त शिक्षण-अधिगम प्रक्रियाओं के लिए जीवंत कैंपस आवश्यक है। इस दिशा में छात्रों को खेल, संस्कृति, कला क्लब, पर्यावरण क्लब, गतिविधि क्लब, सामुदायिक सेवा परियोजना आदि में शामिल होने के लिए भरपूर अवसर दिए जाएंगे।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अन्य छात्रों की योग्यता को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी । निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों को अपने छात्रों को महत्वपूर्ण संख्या में फ्रीशिप और छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ।

डॉ.सुधा सक्सेना,  

सहायक प्राध्यापक,

राजनीति विज्ञान।

अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस'

'अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस'

"आओ सबमिल इक दीप जलाएं,
सेवा सद्भावना का संसार बसाएं,
किसीको किसीसे न हो शिकवा ,
प्यार का इक ऐसा जहांन बनाएं।"

हम सब जानते हैं कि गंदगी और स्वास्थ्य का छत्तीस का आंकड़ा है। स्वस्थ रहना है, तो हाइजीन का बेहद ध्यान रखना है, पर क्या आप बता सकते हैं कि वो कौनसी हस्ती थी, जिसने यह बात दुनिया को समझाते समझाते अपनी ही हस्ती मिटा दी? हेल्थ केयर सिस्टम में आज साफ़-सफ़ाई पर, जो इतना ज़ोर दिया जाता है, वो किसकी देन है?
सोचो, सोचो.............................
.….........................................सोचो!!

चलिए, आपकी कुछ सहायता करती हूँ, उत्तर ढूंढने में-  उसे 'लेडी ऑफ़ द लैम्प' के नाम से सारी दुनिया में जाना जाता है।
कुछ समझ आया? क्या कहा...? नहीं..... ।
तो चलो, एक क्लू और देती हूँ- उसका जन्म आज 12 मई के दिन, इटली के फ्लोरेंस शहर में हुआ। अब तो पता चल ही गया जनाब, बिल्कुल सही, वो थी- 'फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल'।

वो नोबल नर्सिंग सेवा की अधिष्ठात्री, प्रेम, दया व सेवा-भावना की प्रतिमूर्ति, आधुनिक नर्सिग आन्दोलन की जन्मदात्री मानी जाती हैं।   ईश्वरीय प्रकाश की प्रतिनिधि यही फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल  1854 के क्रीमिया युद्ध के बाद संसार भर में "द लेडी विद लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हो गई, क्योंकि रात रात भर जाग कर अंधरे में वे एक लैंप हाथ में लिए रोते कराहते सैनिकों की सेवा करती रहती थीं।
हर वर्ष 12 मई को फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल की जयंती पर 'अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस' का आयोजन किया जाता है। 
एक उच्च, समृद्ध ब्रिटिश परिवार में जन्म लेने के बाद भी फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ने लोगों की सेवा का मार्ग चुना था। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपने मां-बाप से कहा, "ईश्वर ने मुझे आवाज़ देकर कहा कि तुम मेरी सेवा करो, लेकिन उस दैवीय आवाज़ ने यह नहीं बताया कि सेवा किस तरह से करनी है।" 1844 में फ्लोरेंस ने तय किया कि उसे नर्सिंग के पेशे में जाना है। लोगों की सेवा करनी है। इसलिए सन 1845 में परिवार के तमाम विरोधों व क्रोध के पश्चात् भी फ्लोरेंस ने सैलिसबरी में जाकर नर्सिंग  ट्रेनिंग ली और अब  फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत ग्रहण कर लिया। अगले कुछ दशकों मे फ्लोरेंस के काम की वजह से नर्सिंग के पेशे को काफ़ी सम्मान की नज़र से देखा जाने लगा। अस्पतालों में साफ़-सफ़ाई पर ज़ोर दिया जाने लगा। तमाम मुश्किलों के बावज़ूद वे अंत तक अपने इस निर्णय से बिल्कुल भी नहीं डिगीं।
डॉ. मधुगुप्ता,
सह आचार्य,
हिंदी विभाग।

Reimagining Vocational Education


As per the reports of the 12th Five-Year Plan (2012–2017) it was estimated that less than 5% of the Indianworkforce in the age group of 19–24 received the formal vocational education. If we look at the Numbers from few countries, we will find it to be very high e.g. USA-52%, Germany-75%, South Korea-96%. These numbers reflect the need to Speed up the spread of vocationaleducation in India to achieve better economic growth & standards of living.

The initial focus of the vocational education wasmainly on students of Classes 11–12 and on dropouts inGrade 8 and upwards. But at same time the students which were passing out from Schools with vocational subjectswere having no clear-cut pathways in higher education to continue with the vocational education they had received.

For the Vocational education received during the school time there was no addon benefit in higher education thus the students started losing interest in same.

The policy document aims to overcome this gap and also offers a phase out integration of vocational education programmes into higher education. It will ensure that every child learns at least one vocation of his choice and gets an exposure to several more for better learning.

It is expected by 2025, that at least 50% of scholars at school and higher education system shall haveexposure to vocational education. Higher education institutions will offer vocational educationeither on their own or in partnership with industry and NGOs. 

At same time the programs of B.Voc. Degrees introduced in 2013have started to attract more and more students as it offers a formal higher education degree in the chosen vocational field. At same time ‘Lok Vidya’, will be made accessible tostudents through integration into vocational education courses.

Dr.Mukesh Kumari

Assistant professor

नेशनल टैक्नोलॉजी डे'

'नेशनल टैक्नोलॉजी डे'

11 मई का दिन भारत के लिए वैश्विक स्तर पर बेहद खास है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस अर्थात 'नेशनल टैक्नोलॉजी डे' 11 मई के दिन मनाया जाता है। वैसे तो भारत आदिकाल से ही विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में अग्रगामी रहा, तब ही तो इसे विश्व गुरु कहा गया, पर आज के दिन हमारे देश भारत में आधुनिक टेक्नोलॉजी क्रांति का बीज बोया गया। आज का दिन 1998 के 'पोखरण परमाणु टेस्ट' और अंतरिक्ष में भारत की बड़ी प्रगति के रूप में इतिहास में दर्ज है। आज ही के दिन भारतीय सेना के पोखरण परीक्षण रेंज में भारत द्वारा किए गए पाँच परमाणु बम विस्फोटों की सीरीज में पहला कदम था। यह पोखरण में पाँच परमाणु परीक्षणों में से पहला था जो अमेरिका की ओर से दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम लिटिल बॉय से चार गुना अधिक शक्तिशाली था। भारत ने आज ही के दिन ऑपरेशन शक्ति मिसाइल को सफलतापूर्वक फायर किया था।
इस प्रकार भारत ने परमाणु मिसाइल का परीक्षण करते हुए दुनियाभर में न्यूक्लियर खेल को पूरी तरह से बदल दिया। डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बदौलत भारत ने पश्चिमी शक्तियों के कभी न खत्म होने वाले प्रभुत्व को चुनौती दी।
डॉ. मधुगुप्ता
सह-आचार्य,
हिंदी विभाग,

।।माँ-महामंत्र।

।।माँ-महामंत्र।।
'माँ' पर लिख सकूं, मेरी कलम में वो कूवत नहीं और न ही मेरे शब्दों में वो सामर्थ्य है, कि माँ को परिभाषित कर सकूँ। जब-जब माँ पर लिखने की सोचती हूँ, मेरे विचार बौने पड़ जाते हैं और भाव रुद्ध होकर बैठ जाते हैं। माँ  ने हमें खुद लिखा है, पल पल रचा है। हम क्या खाकर माँ के बारे में लिखेंगे, क्या पाकर उसे साकार कर पाएंगे, क्या करके उस स्वरूप को जीवंत कर पाएंगे, जिसमें दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती तीनों देवियां एक साथ विराजती हैं। तैंतीस करोड़ देवी देवताओं की आराधना यदि आप एक साथ करना चाहते हैं, तो सिर्फ माँ की आराधना कर लीजिए। उसकी आराधना से आपको चारों धाम की तीर्थ यात्रा करने का पुण्य मिल जाएगा। तब मक्का मदीना जाए बिना ही आप हाज़ी बन जाएंगे। 
यही अमरनाथ है, यही केदारनाथ, बद्रीनाथ का द्वार भी यही है और रामेश्वरम का पाट भी यही है, जगन्नाथ का ठाठ भी तो यही माँ है।
जानती हूँ, धृष्टता कर रही हूँ, पर मन मजबूर कर रहा है कहने को, क्योंकि यही चिरंतन सत्य भी है- छोड़ो मंदिर की देहरियों को, कुछ नहीं रखा है मस्जिद की मीनारों में, गिरजे के घंटे भी व्यर्थ हैं, यदि आपकी माँ ही आपसे रुष्ट है।
 
"तेरे दूध का हक़ मुझसे अदा कभी न होगा।
तू है नाराज़ तो खुश मुझसे खुदा क्या होगा।।"

मैंने कब मना किया, कि आप दीन दुखियों की सेवा न करें, आहतों को राहत न पहुँचाएं, रोगियों को आरोग्य प्रदान न करें, वृक्षों को न संभालें, धरती को न सँवारे,  जीव जंतुओं की दुर्लभ प्रजातियों को न बचाएँ, पर्यावरण संरक्षण के लिए न लड़े, अपनी संस्कृति पर न मर मिटें, करें, खूब समाज सेवा करें, खूब देश सेवा करें, मानवता की सेवा में खुद को लगा दो, खपा दो, पर उस माँ का भी तो पता ले लो, जिसने जन्म दिया, पाला, पोषा और इस लायक बना दिया। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि जो अपनी माँ का ही न हुआ, वह इस दुनिया में किसी का न हो सकेगा।  
 
हम भलीभांति जानते हैं कि व्यक्ति पर तीन प्रकार के ऋण माने गए हैं- पितृ ऋण, ऋषि ऋण, और देव ऋण पर हमारे शास्त्रों  में मातृऋण की तो कल्पना तक नहीं की गयी है, ये माँ ही है, जो बच्चे पर कोई बोझ डाल ही नहीं सकती। वह तो सदा अपने बच्चों को उऋण ही रखती है, उसे कुछ चाहिए ही नहीं। बस कोई उससे यह पूँछ भर ले-"माँ कैसी हो, कुछ चाहिए?" बस इस कुछ में ही वो सबकुछ पा जाती है। फिर भी यदि आप मानते हैं कि उसने हमको इस धरती पर उतार कर हम पर उपकार किया है,  तो यह तय है कि हम अपने जीवन में तीनों (पितृ, ऋषि और देव) ऋणों से मुक्त हो सकते है, पर मातृऋण से मुक्त तो परमात्मा भी नहीं हुआ, तो हम तो कभी हो ही नहीं हो सकते। 

माँ शब्द स्वयं में एक महामंत्र हैं। हर रोग का नाश कर सात्विकता जगाकर मुक्ति का मार्गदर्शक शब्द- 'माँ' शब्द सुनते ही ऐसा लगता है, मानो कहीं दूर से एक बादल का टुकड़ा उठा, बरसा, और भिगो गया इस जलती आत्मा को, चाहे कहीं भी, किसी भी कीचड़ में क्यों न पड़ी हो- हमारी वो आत्मा। एक ठंड सी पड़ जाती है, सुकून मिल जाता है। मुझे याद है, जब भी मेरी जिंदगी में कोई गम की आंधी चली, उसने अपना आँचल ओट किया और खुद थपेड़ों को सह लिया। माँ की महिमा कहाँ तक लिखूं। चारों वेद, अठारह पुराण और सभी शास्त्रों को कोई बस एक शब्द में लिखना चाहे तो, निश्चिंत होकर 'माँ' शब्द को लिख दे, उसके सारे संदर्भ-प्रसंग, आख्या-व्याख्या, सरलार्थ-लक्ष्यार्थ-गूढार्थ अपनी पूरी मीमांसा के साथ व्यक्त हो जाएंगे। किसी भाष्य, किसी ग्रंथ, किसी महाकाव्य में इससे ज्यादा उपयुक्त शब्द कोई और हो ही नहीं सकता।

"उलझनें मेरी उस क्षण बूझ गई,
जिस पल मुझे यह युक्ति सूझ गई।
दीन दुनिया के सारे समाधानों को, 
बस मैं एक ही शब्द में पिरो लाई।
जिंदगी की कोरी पड़ी ज़िल्द पर, 
मैं सिर्फ 'माँ' हर्फ़ को लिख आई।"

आज के मातृ दिवस पर बस एक ही बात कहना चाहूँगी। माँ, माँ होती है, उसकी कोई उपमा नहीं होती, कोई आकार प्रकार नहीं होता, माँ, माँ में भेद मत करो। चाहे वह आपकी हो या फिर इसकी, उसकी या किसी की भी। वह केवल माँ ही है। उसे  टुकड़ों में मत बाँटो। उस पर लेबल चस्पा मत करो। सच कह रही हूँ। आज आपने मेरी इस बात का मर्म समझ लिया न, तो आप अपनी आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा संस्कार दे जाएंगे, जो न केवल आपके भविष्य को सुखद बनाएगा, वरन परिवारों को, अंदर तक घर कर गई, कलह क्लेश से बचाकर, जीवन को स्नेह सिक्त शांति से भर देगा, क्योंकि माँ पूरी की पूरी उस एक ही रंग में रंग जाती है, जिस रंग से उसकी संतान की जिंदगी को रंगत मिलती है, चैन मिलता है।

"माँ खेत में हो, तब धानी हो जाती है और मंदिर में, सिंदूर सी हो जाती है। 
माँ न हो तो सच कहूं, सबकुछ होते हुए भी, दुनिया अधूरी सी हो जाती है।"

इस मातृ दिवस पर हम माँ ओं को भी आत्मनिरीक्षण करना है। क्या हम मातृत्व के इस गुरुतर दायित्व को संभाल पा रहीं है, क्या इस शब्द को वो अर्थ, वो भाव, दे पा रहीं हैं, जो इस महिमामय शब्द से अपेक्षित है, क्या इसमें वो ऊँचाई बच पाई है, जो विशालकाय पर्वतों को सहर्ष झुकने पर विवश कर दे, क्या उसमें अब भी समंदर सी वो गहराई है, जो धरती की तमाम मलीनता को अपनी तहों में छिपाकर भी मुस्करा लेती है? एक बार सोचना जरूर.....!
डॉ. मधुगुप्ता
सह-आचार्य.
हिंदी विभाग,

‘विश्व रेडक्रॉस दिवस’

‘विश्व रेडक्रॉस दिवस’

प्रतिवर्ष 8 मई को रेडक्रॉस के संस्थापक *जीन हेनरी ड्यूनेंट* के जन्मदिन को ‘विश्व रेडक्रॉस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1901 में उन्हें इसके लिए शांति का सबसे पहला नोबेल पुरस्कार मिला था।

रेड क्रॉस एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसका मिशन मानवीय जिन्दगी व सेहत को बचाना है।
प्रारम्भ में इसका नाम “इंटरनेशनल कमिटी फॉर रिलीफ टू द वाउंडेड” रखा गया था। *इसका मुख्यालय जेनेवा (सि्वट्जरलेंड)* में है। 

इसे तीन बार(1917,1944,1963)में नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। 
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य युद्ध के दौरान घायल सैनिकों की मदद और चिकित्सा करना है। साथ ही विपदा के समय में कठिनाईंयों से राहत दिलाना है। यह संस्था शांति और युद्ध के समय दुनियाभर के विभिन्न देशों की सरकार के बीच समन्वय का कार्य करती हैं।
भारत में रेड क्रॉस सोसायटी की स्थापना 1920 में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत की गई थी।   सफेद पट्टी पर लाल रंग का क्रॉस का चिह्न इस संस्था का निशान है। *रेड क्रॉस चिन्ह का गलत इस्तेमाल करने पर 500 रुपये जुर्माना* लगाया जाता है और उस व्यक्ति की संपत्ति भी ज़ब्त की जा सकती है।

।।गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर।।

।।सुविचार।।
"मिटटी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आज़ादी नहीं है।"
"पंखुडियां तोड़ कर आप फूल की खूबसूरती नहीं इकठ्ठा करते।"
"सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते।"
"अकेले फूल को कई काँटों से ईर्ष्या करने की ज़रुरत नहीं होती।"
     ।।गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर।।

आनंद नवसंवत्सर की अनंत शुभकामनाएँ

"झकझोर रही हैं झंझाएँ, 
आंधियों के साथ,
बरस रही हैं मुश्किलें, 
अतिवृष्टि मूसलधार।
नव कीर्ति, नव स्फूर्ति, 
नव दीप्ति ले हाथ।
नव संवत्सर! सब पर,
कृपा करो हे, प्राणाधार।"

।।नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।।

 *नव संवत्सर:* 
प्रत्येक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथमा को भारतीय नववर्ष प्रारंभ होता है। सनातन धर्म के मानने वाले इसे नव वर्ष के रूप में मनाते हैं क्योंकि यह वैज्ञानिक दृष्टि के साथ- साथ विश्व की सामाजिक व सांस्कृतिक संरचना को भी प्रस्तुत करता है।  
विक्रम संवत उसी राजा के नाम पर प्रारंभ हुआ, जिसके राज्य में न कोई चोर था, न कोई अपराधी, और न ही कोई भिखारी था। वह चक्रवर्ती सम्राट था, जिसने भयरहित चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित किया, जिसने स्वयं भगवान् विष्णु के सदृश्य "परम भागवत" पद अर्जित किया।
जी हाँ! सम्राट विक्रमादित्य द्वारा ५७ ई. पू. में इसी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह अखंड राज्य स्थापित किया था।मान्यता है कि ब्रह्माजी ने इस दिन सम्पूर्ण सृष्टि और लोकों का सृजन किया था। वस्तुतः चैत्र ही एक ऐसा माह है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं और उन्हें वास्तविक मधुरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है, अतः वर्ष का प्रथम माह होने का श्रेय चैत्र को ही मिला। इसे गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। इसी दिन से नया पंचाग शुरू होता है, और ज्योतिष की गणना के अनुसार देश, राज्य के समस्त विषयों की भविष्यवाणी, लोक व्यवहार, विवाह, अन्य संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों की तिथियां निर्धारित की जाती हैं। 

1.युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
2.राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिए चुना। 
3.नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। 
4. प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन यही दिवस है।
5.गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव: सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।
6. आर्य समाज स्थापना दिवस: समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
7. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रकट हुए ।
आइए, अखिल ब्रह्मांड के जन्मदाता, उस परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करें कि यह नव संवत्सर 'आनंद' यथा नाम तथा गुणा सकल सृष्टि के दृष्टिपथ में  आनंद की वृष्टि करेगा।  

*आनंद नवसंवत्सर की अनंत शुभकामनाएँ ।*

*।। 2 मई, विश्व हास्य दिवस।।*

*।। 2 मई, विश्व हास्य दिवस।।* 
 
"हँसता हुआ हर चेहरा 
अच्छा लगता है,
उस चेहरे का नूर अलग 
ही लगता है,
मायूसी में खुलकर लगा 
एक मासूम ठहाका,
हौसलों को आसमानों में 
उड़ाने लगता है।"

हँसता मुस्कराता हुआ हर चेहरा और मासूमियत से लगाए गए ठहाके हर कोई देखना और सुनना  चाहता है, क्योंकि एक नन्हीं सी हँसी चेहरे का नूर ही बदल देती है और एक खुलकर लगाया गया ठहाका दुःखों का नाश कर, दिल में जीने की नई उमंग ले आता है। इसीलिए हास्य विनोद को सफलता की चाबी कहा जाता है। 
 *आचार्य रामचन्द्र शुक्ल* ने कहा है कि  "हँसी भीतरी आनंद का बाहरी चिह्न है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम-से-उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर को अच्छा रखने की अच्छी-से-अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गए हैं कि हँसो और पेट फुला हँसों।" 

वस्तुतः हँसी न जाने कितने ही कला-कौशलों से भली है। जितना ही अधिक आनंद से हम हँसेंगे उतनी ही हमारी आयु बढ़ेगी। एक यूनानी विद्वान कहा है कि "सदा अपने कर्मों को झीखने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया, पर प्रसन्न मन डेमाक्रीटस 109 वर्ष तक जिया।" 

याद रखिए, हँसी-खुशी का नाम ही जीवन है, जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है।

यहाँ मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहूँगी कि आपकी हँसी अवसर के अनुकूल हो, कुटिलता से दूर स्वस्थ हो, और कृत्रिमता रहित आंनद से भरपूर होनी चाहिए, तब ही वह आपको और आपके स्वजन-परिजन, अपने-पराए और सृष्टि के सकल प्राणियों को सुकून पहुंचा पाएगी। सुअवसर की हँसी उदास-से-उदास मनुष्य के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है। आनंद युक्त हास्य एक ऐसा प्रबल इंजन है कि जिससे शोक और दुख की दीवारें खंड खंड हो ढह जाती हैं। 
इसीलिए आज हास्य को एक सर्वमान्य उपचार थेरेपी के रूप संसार के समस्त राष्ट्रों ने स्वीकार कर लिया है और इस हेतु वे अपने अपने देश में उत्तम से उत्तम उपाय कर रहे हैं।
एक सुयोग्य वैद्य-डॉक्टर वही होता है जो अपने रोगी के कानों में हास्य और आनंद रूपी मंत्र फूँकता है, जिससे दवा दुगुनी चौगुनी होकर असर करती है। 
आज कोरोना के इस भीषण और त्रासद काल में वही बच रहे हैं, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है और हमारे शरीर की इस प्रतिरक्षा प्रणाली को हास्य दृढ़ से दृढ़तर और फिर दृढतम बनाकर हमारी प्राण रक्षा  करेगा, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
अतः आप सबसे आज *विश्व हास्य दिवस* पर यही अनुरोध है-               
"होठों के घरोंदों में क्यों छिपी है-मुस्कान,
दिल खोलो और चेहरे पर सजा दो ये-मुस्कान,
रुठों को मनाने का अचूक  नुस्खा है-मुस्कान।
बेरंग दुनिया में रंग भरती तूलिका है-मुस्कान।"
डॉ. मधु गुप्ता,
सह आचार्य,
हिंदी विभाग।

'मई दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं'

'मई दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं'
आज हम आपके लिए एक छोटी सी क्विज लेकर आए हैं- *बूझो तो जाने-* 
1.मई दिवस को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
…......
2.अंतररास्ट्रीय स्तर मई दिवस सबसे पहले कब मनाया गया?
.......
3.मई दिवस का प्रारंभ किस देश से हुआ?
........
4.मई दिवस की क्रांति फलस्वरूप काम के कितने घंटे निश्चित किए गए?
........
5. भारत में मई दिवस मनाने की शुरुआर कब से हुई?
........
उत्तर कमेंट बॉक्स में लिखे।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

3 मई, 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस'

3 मई, 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस'

"तेरा निज़ाम है, सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात जरूरी है, इस बहर के लिए।           (दुष्यंत कुमार)
इतिहास गवाह है कि जब-जब पत्रकारिता सरकार के विरुद्ध मुखर होती है, तब तब प्रेस कीआज़ादी पर खतरा मंडराने लगता है। अभी तक की गई तमाम कोशिशों के बावजूद भी मीडिया न तो पूरी तरीके से स्वतंत्र है और न ही निष्पक्ष। यद्यपि मीडिया की आजादी के लिए तमाम देशों में तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन वर्तमान हालत को देखते हुए लगता है कि अभी दिल्ली दूर है।  
वस्तुतः प्रेस की स्वतंत्रता वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत प्रिंट, टेलीविजन और वर्तमान समय में लोकप्रिय होते जा रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्लेटफार्म, जो जनता तक सूचनाएं पहुंचाते हैं, वे सरकार की निगरानी और गिरफ्त से मुक्त रहे, सत्ता की धौंस और पूंजीवाद की आंच से दूर रहें ताकि सत्य का अन्वेषण हो सके। प्रश्न तो यह है कि आज हम जिस मीडिया को मुखर होकर टी.वी. पर ऊंचे ऊंचे स्वरों में बहस करते देख रहे हैं, अखबार की सुर्खियों में कलम की जो स्याही पढ़ रहे हैं, क्या वह वास्तव में सत्ता और पूंजीवादी शिकंजे से बाहर  हैं? सच तो यह है कि मीडिया के भी आज अपने अपने खेमें बन गए हैं। बड़े चातुर्य के साथ वे प्रेस, जिसे प्रजातंत्र का चौथा पाया कहा जाता है,की स्वतंत्रता से खेल रहे हैं। उनकी पत्रकारिता के छिपे एजेंडे हैं। वे पत्रकार रह ही नहीं जाते। अपने आकाओं के प्रवक्ता मात्र बन कर रह जाते हैं। हाँ कुछ स्वतंत्र सच्चे पत्रकार हैं, तो वे साधनों के अभाव में अपने ही अस्तित्व की लड़ाई से उबर नहीं पाते और इन तेज तर्रार नक्कारों के बीच उनकी आवाज तूती सी पिपियाती रह जाती है। प्रेस की आजादी खुद प्रेस ही निगलती जा रही है।बाढ़ खेत को ही चुगती जा रही है। हम भली भांति जानते हैं कि स्वतंत्रता की कीमत शाश्वत सतर्कता ही है और यह शाश्वत सतर्कता केवल  स्वतंत्र, निष्पक्ष और बेबाक प्रेस या मीडिया नामक संस्था ही प्रदान कर सकती हैं। दूसरे शब्दों में यदि हमको मुक्त और स्वतंत्र जीवन जीना है, तो यह सुनिश्चित करना मीडिया का काम है कि उन लोगों पर नजर रखें, जिनके हाथों में आम जन की स्वतंत्रता निहित है,शासन की सत्ता निहित है। 
माना जाता है कि सफल लोकतंत्र के लिए ये चार ठोस आवश्यकताएं हैं- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा, नागरिकों की सत्ता में भागीदारी और कानून के समक्ष समानता, पर सच कहूं तो प्रेस की स्वतंत्रता के बिना यह सब झूठ है, फरेब है, केवल एक मृग मरीचिका। लोकतंत्र तभी बचेगा जब प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता बचेगी, क्योंकि लोकतंत्र अपने ऐसे नागरिकों पर निर्भर करता है, जो अच्छी तरीके से सूचित हों, जिससे वे अपने संवैधानिक अधिकार और कर्त्तव्यों को जान सकें और अपने मताधिकार का प्रयोग कर प्रतिनिधियों का उचित चुनाव कर सकें, पर एक साधारण नागरिक के लिए यह असंभव है कि वह ऐसी जानकारी खुद अपने साधनों से जुटा सके। ऐसे में प्रेस ही वह संस्था है, जो सच्चाई की तह तक जाकर तथ्य खोजे औऱ सूचनाओं को सत्यापित करके प्रचारित करे, जिससे लोगों को अपने राजनीतिक निर्णय लेने में मदद मिले। इस प्रकार प्रेस एक लोकतांत्रिक सरकार के कुशल कामकाज के लिए न केवल  शक्तिशाली उपकरण बन जाती है, वरन तथ्यों की सत्यापित रिपोर्टिंग कर सरकार की निरंकुशता पर भी अंकुश स्थापित करती है। वर्तमान समय में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी तथा मीडिया के क्षेत्र में सोशल मीडिया के नए स्वरूप के परिणामस्वरूप सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है। ऐसे में प्रेस की स्वतंत्रता के सामने महत्त्वपूर्ण चुनौती और अनेक यक्ष प्रश्न आ खड़े हुए हैं। 
कृपया मीडिया कर्मी बुरा न मानें इस दिवस का उद्देश्य प्रेस की आजादी के महत्त्व के प्रति जागरूकता फैलाना है. साथ ही ये दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता की बात करता है, अतः मुझे भी आज 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' पर वाक और अभिव्यक्ति की आजादी दें। मीडिया ने जहाँ जनता को निर्भीकता पूर्वक जागरूक करने, भ्रष्टाचार को उजागर करने, सत्ता पर तार्किक नियंत्रण एवं जनहित कार्यों की अभिवृद्धि में योगदान दिया है, वहीं लालच, भय, द्वेष, स्पर्द्धा, दुर्भावना एवं राजनैतिक कुचक्र के जाल में फंसकर अपनी भूमिका को कलंकित भी किया है। व्यक्तिगत या संस्थागत निहित स्वार्थों के लिए पीत पत्रकारिता को अपनाया है, ब्लैकमेल द्वारा निरीह लोगों का शोषण किया है, चटपटी खबरों को छापकर न केवल सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने का काक प्रयास किया है, साथ ही सांस्कृतिक पतन का दलदल भी तैयार किया है। खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करना, दंगे भड़काने वाली खबरें सुर्खियों में प्रकाशित करना, घटनाओं एवं कथनों को द्विअर्थी रूप प्रदान करना, भय या लालच में सत्तारूढ़ दल की चापलूसी करना, अनावश्यक रूप से किसी की प्रशंसा और और किसी दूसरे की आलोचना करना, दुर्घटना एवं संवेदनशील मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना, ईमानदारी, नैतिकता, कर्त्तव्यनिष्ठा और साहस से संबंधित खबरों को नजरअंदाज कर अपनी टी आर पी बढ़ाने में लगा मीडिया अपनी आवाज को नीलाम करता जा रहा है। प्रेस को अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखते हुए ,अपनी पवित्रता निष्पक्षता को बचाकर जनता का विश्वास जीतना होगा। प्रेस को समझना होगा कि वह एक ऐसा उपकरण है, जो अप्रत्यक्ष रूप से उन सभी अधिकारों की रक्षा करता है, जो लोकतंत्र को निरापद बनाते हैं। इस प्रकार जहाँ प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना लोगों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना है, वहीं आज प्रेस को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उश्रृंखलता पर नैतिकता और स्वानुशासन का शासन मानना ही होगा। 
'विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस' पर प्रेस की आजादी के महत्त्व के लिए दुनिया को आगाह करने वाला यह दिन, जो हमको बताता है कि लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है, पर विश्व की तमाम मीडिया को अंत में मैं इन्हीं शब्दों के साथ शुभकामनाएं देना चाहूंगी कि-
"शक्ति का तू स्रोत है, वाणी में तेरी ओज है,
लोक के इस तंत्र की, 
तू इक महान खोज है।"
बिना डरे बिना गिरे 
कलम को हाथ लिए
तू साबित कर खुद को 
कि तू स्वच्छ सर्वोच्च है।
डॉ. मधु गुप्ता
सह आचार्य,
हिंदी विभाग।

उच्चतर शिक्षा में समता और समावेश


शिक्षा प्रणाली किसी भी देश की प्रगति की नींव है जब यह नींव मजबूत होगी तभी उस देश का विकास संभव है और वह भी तब जब शिक्षा बिना किसी भेदभाव के समाज के प्रत्येक वर्ग को समान रूप से उपलब्ध हो।

उच्चतर शिक्षा सभी व्यक्तियों के लिए संभावनाओं के द्वार खोलती है जो उन्हें विपरीत परिस्थितियों से निकाल सकती है। इसी कारण सभी के लिए उच्चतर गुणवत्ता युक्त शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए प्रायः यह देखा गया है कि सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग शिक्षा से अछूता रह जाता है नई शिक्षा नीति सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े समूह पर विशेष बल देते हुए सभी छात्र छात्राओं तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समान पहुंच सुनिश्चित करती है।

 एसईडीजी (सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) के शिक्षा से अछूता रह जाने के बहुत से कारण है। जो स्वयं में कारण एवं प्रभाव दोनों है इसके अंतर्गत उच्चतर शिक्षा के अवसरों की जानकारी का अभाव, आर्थिक- भौगोलिक बाधाएं, भाषाई अवरोध, विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त सहायता तंत्र की कमी को शामिल किया जाता है ये विद्यालय एवं उच्चतर शिक्षा प्रणाली दोनों में समान है इसलिए विद्यालय एवं उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में समता, समानता और समावेश से जुड़ा दृष्टिकोण एक समान होना चाहिए। अतः उच्चतर शिक्षा में समता, समानता और समावेशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रयास विद्यालय स्तर पर भी होने चाहिए।

इस प्रयोजनार्थ सभी सरकारों और उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा अपनाए जाने वाले महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार है-

सार्वजनिक एवं निजी दोनों तरह के शिक्षण संस्थानों में एसईडीजी की शिक्षा के लिए आर्थिक वित्तीय सहायता और छात्रवृत्ति। एसईडीजी का नामांकन बढ़ाने के लिए उच्चतर शिक्षा के अवसरों और छात्रवृत्ति की जानकारी के लिए प्रचार प्रसार। प्रवेश प्रक्रिया में जेंडर संतुलन को बढ़ावा देना। ऐसे शिक्षण संस्थानों का निर्माण एवं विकास जो स्थानीय,भारतीय एवं द्विभाषीय रूप से शिक्षण कराये।

 प्रवेश प्रक्रिया एवं पाठ्यक्रम को अधिक समावेशी बनाना। उच्चतर शिक्षा कार्यक्रमों को अधिक रोजगार परक बनाना। भेदभाव एवं उत्पीड़न के खिलाफ बने सभी नियमों को सख्ती से लागू करना। एसईडीजी से बढ़ती भागीदारी को सुनिश्चित करने से जुड़े विशिष्ट योजनाओं को शामिल करते हुए संस्थागत विकास योजनाओं का निर्माण करना जिनमें उपरोक्त बिंदु शामिल हो पर इन्हीं तक सीमित ना हो।

 परंतु इस प्रकार की योजनाओं का लाभ समाज के व्यक्तियों को तभी प्राप्त हो पाएगा जब योजनाओं का लाभ उठाने वाले व्यक्तियों को इनकी संपूर्ण जानकारी होगी तथा उन्हें इस प्रकार की योजनाओं का संपूर्ण लाभ उठाने दिया जाएगा जिससे वे अपनी शिक्षा व जीवन के स्तर को ऊपर उठा सके और संपूर्ण समाज का विकास हो सके।

नेहा शर्मा, 

सहायक आचार्य, 

भूगोल विभाग।

उच्चतर शिक्षण संस्थानों में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की स्थापना

नई शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन में प्रभावी प्रशासन और नेतृत्व की भूमिका मुख्य है जो उच्चतर शिक्षा संस्थानों को उत्कृष्ट और नवाचार संस्कृति के निर्माण हेतु प्रेरित करता है।

उच्चतर शिक्षण संस्थानों में ग्रेडेड प्रत्यायन और ग्रेडेड स्वायत्तता की प्रणाली अपनाकर संस्थाओं में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स स्थापित किए जाएंगे, जिन्हें हस्तक्षेप मुक्त संस्था संचालन, नियुक्तियां एवं शासन के समस्त अधिकार होंगे।

बोर्ड आफ गवर्नर्स राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामक परिषद (एनएचईआरसी )के माध्यम से एचईसीआई द्वारा अनिवार्य सभी नियामक दिशानिर्देशों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा।

संस्थानों में सभी नेतृत्व पदों के लिए उच्चतर शैक्षणिक योग्यता वाले व्यक्तियों का चयन होगा जो संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक प्रतिबद्धता, समग्रता ,टीम वर्क ,विविध लोगों के साथ कार्य करने की क्षमता एवं सकारात्मक दृष्टिकोण युक्त होना चाहिए।

संस्था की उपयुक्त संस्कृति का निर्माण हो सके इसके लिए      बीआेजी के कार्यकाल की स्थिरता महत्वपूर्ण है किंतु साथ ही योजनाबद्ध तरीके से नेतृत्व की उत्तराधिकरिता भी सुनिश्चित की जाएगी।

इसी के साथ समस्त उच्चतर शिक्षण संस्थान संस्थागत उत्कृष्टता, स्थानीय समुदाय से जुड़ाव, वित्तीय ईमानदारी एवं जवाबदेही हेतु कर्यनितिक संस्थागत विकास योजना बनाएगा जिसमे आईडीपी, बोर्ड के सदस्यों ,संस्थागत लीडरों, संकाय ,छात्रों और कर्मचारियों की संयुक्त भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।

डॉ अनिता शर्मा,

सहायक आचार्य,

वनस्पति विज्ञान।

Outstanding and Effective Leadership



In order to ensure the smooth and efficient running ofthe the higher institutions there should be availability of stimulated energized and competent faculty.
 To promote this policy the following is initiatives should be taken into consideration 
* All the higher institutions must be furnished with essential infrastructure facilities.
 *The teaching activity should be adequate enough in order to maintain a a decent time for interaction between the the faculty and the student.
*The faculty must be given sufficient freedom to structure their curriculum, teaching learning material and assignments.
*Faculty should be kept inspired through proper promotion and incentive system.
*The faculty recruitment system should be done with a transparent process.
*The higher institutions should involve outstanding and effective leadership for its smooth functioning.
Dr. Sumita Sarda,
Assistant professor,
Dept. Of Commerce.

शिक्षा नीति-2020- सराहनीय प्रयास


29 जुलाई 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 की मंजूरी दी गई। यह 21वीं सदी की भारत की पहली शिक्षा नीति है तथा पुरानी शिक्षा नीति-1986 के 34 वर्ष बाद लागू हुई है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत विभिन्न उद्देश्यों जैसे शिक्षा में समानता, गुणवत्ता, छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय और नवाचार के द्वारा उनमें कौशल एवं ज्ञान का विकास करना है, को ध्यान में रखा गया है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत छात्रों के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ शिक्षकों से संबंधित विभिन्न सुधार लाने का प्रयास किया गया है जैसे:- शिक्षकों की भर्ती व पदोन्नति अब उनकी योग्यता एवं कार्य प्रदर्शन के आंकलन पर आधारित होगी। शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा 2022 तक राष्ट्रीय प्रोफेशनल मानक (एनपीएसटी) लागू किया जाएगा। प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक-छात्र अनुपात को 30:1 से कम तथा सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित बच्चों वाले विद्यालयों में 25:1 से कम किया जाएगा। प्रत्येक शिक्षक को अपने व्यावसायिक विकास,  नवाचार और स्वयं में सुधार करने हेतु प्रत्येक वर्ष 50 घंटों का सतत व्यवसायिक विकास कार्यक्रम (सीपीडी) में भाग लेना होगा। प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा ( ईसीसीई) द्वारा आंगनबाड़ी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए डिप्लोमा कार्यक्रम चलाए जाएंगे, जिसकी न्यूनतम योग्यता 10+2 होगी। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) द्वारा अध्यापक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफटीई) का विकास किया जाएगा। शिक्षकों के लिए विद्यालयों में शिक्षण हेतु न्यूनतम डिग्री योग्यता 4 वर्षीय एकीकृत B.Ed.  डिग्री का होना जरूरी किया जाएगा। अस्थाई शिक्षकों के स्थान पर नियमित शिक्षकों की भर्ती पर जोर दिया जाएगा। शोध कार्य या पी.एचडी. कर रहे छात्रों को अपने विषय से संबंधित एक क्रेडिट कोर्स करना आवश्यक होगा, ताकि भविष्य में वे उसका व्यावहारिक उपयोग कर सकें, जिसे वे स्वयं/दीक्षा पोर्टल से जाकर कर सकते हैं। इस प्रकार नवीन शिक्षा नीति-2020,  भारतीय शिक्षा को एक नई दिशा में ले जाने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सराहनीय प्रयास है।

शेफाली मेंदीरत्ता,

सहायक प्राध्यापक,

समाजशास्त्र।

The New Education Policy -2020

The New Education Policy -2020 , which has replaced the earlier policy introduced  34 years ago, envisaged for some transformational  reforms in the Indian  education system.  It talks about the educational system that lays emphasis on experiential learning along with a focus on skills like critical thinking, problem solving etc.

The emphasis is on Holistic and Multidisciplinary education with flexibility of subjects and provisions for multiple exit and entry. Multiple exit/entry and the credit bank will give students lot of flexibility in getting educated and earning degrees while they are working  and taking decisions based on career choices. With multiple exit points in studies, one could get into employment at different ages, different times, and different levels of education which is a thoughtful strategic structure.

 Multidisciplinary and Holistic learning is an innovative medium through which students can learn humanities, mathematics, sciences ,technologies ,  professional skills , vocational skills, social sciences, human values, morality, ethics and so on at the same time. It aims at overall development of the students by providing them the knowledge of different fields at the undergraduate and post graduate level. The college affiliation system which prevented curriculum innovations will be phased out. This will allow industry-linked curriculum and faster modifications based on industry’s needs, therefore helping the students in placements.

The NEP focuses more on technological innovations which will  ultimately leads to better and improved teaching - learning process and better evaluation of the student progress. Technology driven learning is more flexible and collaborative as compared to traditional formats like classroom learning as through technology teachers can extend learning beyond the classrooms.. 

Dr. Manish  Rathi,
Assistant Professor,
Dept.of Commerce.


Catalyzing Quality Academic Research in all Fields through a New 45 National Research Foundation

 Catalyzing Quality Academic Research in all Fields through a New 45 National Research Foundation

 Knowledge creation and research are critical in growing and sustaining a large and vibrant economy, uplifting society, and continuously inspiring a nation to achieve even greater heights in the field of education and research fields, high innovative ideas are promoted in this policy. There were  strong knowledge societies that attained intellectual and material wealth in large part through celebrated and fundamental contributions to new knowledge in the realm of science as well as art, language, and culture that enhanced and they uplifted not only their own civilizations but others around the globe ecosystem of research is more important than ever with the rapid changes occurring in the world today, in the realm of climate change, population dynamics and management, biotechnology, micro biology, digital and economical marketplace. The rise of machine learning and artificial intelligence favoured India to become a leader in these disparate areas, and truly achieve the potential of its vast talent pool to again become a leading knowledge society in the coming years and decades, the nation will require a significant expansion of its research capabilities and output across disciplines. Today, the advancement of research is more than ever before, for the economic, intellectual, societal, environmental, and technological health and progress of the develope societal challenges that India needs to address today, such as access for all its citizens to clean drinking water and sanitation facility in all parts of India, quality education and healthcare, improved transportation, air quality, energy, and infrastructure, will require the implementation of approaches and solutions that are not only informed by top-notch science and technology but are also rooted in a deep understanding of the social sciences and humanities and the various socio-cultural and environmental dimensions of the nation. Facing and addressing these challenges will require high-quality interdisciplinary research across fields that must be done in India and cannot simply be imported; the ability to conduct one’s own research also enables a country to much more easily import and adapt relevant research from abroad. n addition to their value in solutions to societal problems, any country's identity, upliftment, spiritual/intellectual satisfaction and creativity is also attained in a major way through its history, art, language, and culture. Research in the arts and humanities, along with innovations in the sciences and social sciences, are, therefore, extremely important for the progress and enlightened nature of a nation.Research and innovation at education institutions in India, particularly those that are engaged in higher education, is critical. Evidence from the world’s best universities throughout history shows that the best teaching and learning processes at the higher education level occur in environments where there is also a strong culture of research and knowledge creation; conversely, much of the very best research in the world has occurred in multidisciplinary university settings. India has a long historical tradition of research and knowledge creation, in disciplines ranging from science and mathematics to art and literature to phonetics and languages to medicine and agriculture. This needs to be further strengthened to make India lead research and innovation.

Dr. Sonalika Singh

Assistant Professor

Dept. of Zoology

 

Institutional Restructuring and Consolidation


“The Higher Education is most important part for contribution of economical development of country.”

The India has most young populations those are always attracting for higher education. The new Education Policy aims to increase Gross Enrolment Ratio in higher education including vocational and professional education.

The policy stress on more institutional restructuring, multidisciplinary education includes qualitative research and faculty development. The policy also aims to stress on credit based courses and project for community development. The students of higher education will provide opportunity for internship with industry, business etc with more research work.

The New Education policy also aims that higher education sector to provide education for under graduate level, post graduation level which also provides vocational and professional education and Phd programmes with multidisciplinary education. The new education policy design to encourage the students from outside India.

The International students facilitates to study in India qualitative education at minimum price. To achieve this objectives International students offices establishes in India to facilitate them. The policy also emphasis on Faculty/ Students exchange programme for research/ teaching with foreign collaborations. Due to this collaboration top foreign Universities will be entered in India on one hand and on the other hand Indian Universities also established in foreign countries.

Dr.Manish.Madan, 

Assistant.Professor, 

Commerce (ABST)

 

 

Amalgamation of Education and Technology:

 Amalgamation of Education and Technology: NEP 2020 The National Education Policy, 2020, launched by the Ministry of Human Resource Development (“MHRD”), is revolutionary in every sense including the need for early childhood care, inclusive education and restructuring of the current curriculum, an inherent thread that runs through the Policy is the amalgamation of education and technology. As we can realize that presently India has transformed itself into an ‘information based society’ and this leads to use of technology in the field of education to give optimal results in teaching learning process. In the current pandemic situation embedding technology in education is the best aspect incorporated by the Policy to become ‘self-reliant’ India. With this virtual learning is performing as good as conventional form of learning. Significant aspects covered with the implementation of technology in Education Sector by NEP 2020 are: Technology in Primary Education: The Policy noted the importance of technology for primary education removing the gap between teacher and students, introducing digital graphics based learning, digital library, animated videos with the introduction of coding concept keeping in mind future developments. Professional and Higher Education: Professional and higher education is framing students to be future leader, scientists, entrepreneur, educationist and many more and this is only possible with the amalgamation of Education and Technology. Administration in Education: To excel in teaching and learning is not enough for being a Self-Reliant India but administrative aspect also plays vital role. As from the base i.e. taking admission of students till the final generation of degrees to them need to be managed with accuracy and efficiency and that can be made possible with the perfect blend of education and technology. With the usage of technology administrative part can be made more efficient, effective and fast which is the need of hour. Adaption of AI: The Policy recognizes the exhaustive use of AI and challenges arising on account of the widespread use of Artificial Intelligence (“AI”), also highlights the need to adopt changes occurring on account of increased use of AI across all sectors.AI is the way to new dynamic India i.e. Self-Reliant India where things are beyond imagination and limitation. With the implementation of AI in Education sector it is required to invest on digital infrastructure, creation of virtual labs and digital storages, training teachers to become quality content creators, designing and implementing of online assessments, development of online teaching platforms and tools, establishing standards for content, technology and pedagogy for online teaching-learning. Although the National Education Policy has done a remarkable job in embedding technology in ‘education’. In the Indian context, this also raises certain concerns, which need to be considered. As we can see use of Computers, technology and internet is dream in rural areas, in fact, in India both rural and urban area’s population access internet through mobile phone which is not sufficient to ahead with time and achieve the goal as envisioned. Thus in order to be “Atamanirbhar Bharat” with the implementation of technology we need to promote, adopt and adapt with technological aspects at the grass root levels.

 Dr. Budesh Kanwer 

Assistant Professor 

Dept. of Computer Science

Online and Digital Education: Ensuring Equitable Use of Technology


The COVID-19 pandemic has triggered new ways of learning all around the world. Educational institutions are looking toward online learning platforms to continue with the process of educating students in a more innovative manner  of learning which  is also referred to as Technology Enhanced Learning (TEL) or e-Learning.

 This led the National Education Policy 2020 to focus on the significance of online education with simultaneous acknowledgment of its probable risks and dangers. This policy demands for careful evaluation by appropriate pilot studies to determine how the benefits of online/digital education can be reaped by mitigating its downsides.

With the emergence of technology, this Policy recommends the initiatives in the area of teachers training, digital infrastructure, online learning tools, online assessments and examinations with blended education and appropriate standards.

NEP expects the teachers to have basic understanding of using various digital forms of learning. However, many of the schools don’t have the necessary resources & tools to conduct online classes. So, it is important for the schools to invest in training teachers with latest technology updates.

In  order  to evaluate the benefits of integrated education with online education NEP has identified various  agencies, such as the NETF, CIET, NIOS, IGNOU, IITs, NITs, etc.For continuous improvement in the field of digital education.

NEP also focuses on existing e-learning platforms like SWAYAM, DIKSHA, to provide teachers with a structured, user-friendly, rich set of assistive tools for monitoring progress of learners and educators.

Thus there are numerous challenges in conducting online education unless it is blended with experiential and activity-based learning. Appropriate standards and policies laid by NEP 2020 with equity can also resolve various issues for digital and online education.

 Dr.Priti Baheti,  

Assistant Professor, 

BADM.

 

 

 

 

 

 

 

 

गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय भारतीय उच्चतर शिक्षा व्यवस्था हेतु एक नया और भविष्य मुखी दृष्टिकोण


गुणवत्तापूर्ण विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय भारतीय उच्चतर शिक्षा व्यवस्था हेतु एक नया और भविष्य मुखी दृष्टिकोण

नई शिक्षा नीति 2020  मे गुणवत्तापूर्ण महाविद्यालय बनाने हेतु उच्च शिक्षा व्यवस्था में भविष्य को दृष्टिगत करते हुए बहुत सारे बदलावों को प्रस्तुत किया गया है तथा नए नियम बनाए गए हैं ताकि राष्ट्र के आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सके 21वीं सदी में देश को अच्छे और बहुमुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होगी समाज में इतने सक्षम व्यक्ति बनाने हेतु उच्च शिक्षा में बहुत से बदलाव किए गए हैं जो 2020 से लागू किए जा रहे हैं सभी विषयों जैसे कला, सामाजिक विज्ञान भाषा, तकनीकी व्यवस्था, आदि में निपुण किया जा सके सभी का समग्र संपूर्ण विकास हो । सामाजिक स्तर पर भी जागरूक, सक्षम व समस्याओं का समाधान करने वाले नागरिक तैयार किए जाएं सभी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अधिक सामंजस्य पूर्ण तथा उत्पादक बने और। प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करें, उच्च शिक्षा की सभी पूर्व समस्याओं का समाधान किया जाए जैसे विषयों का कठोर विभाजन, सीखने पर कम पर रटने पर अधिक दबाव, शोध की कमी, नेतृत्व क्षमता का अभाव, शिक्षा में असमरूपता  सीमित शिक्षक इत्यादि। यह नीति आमूलचूल परिवर्तन के लिए प्रतिबंध है इसके अंतर्गत गुणवत्तापूर्ण समान , अवसर देने वाले व समावेशी उच्चतर शिक्षा सभी को मिले इसका प्रयास किया गया है उच्च शिक्षा बहु विषयक की जाए पूरे देश में संकाय चुनने की स्वायत्तता हो हर व्यक्ति को सभी संकायो को मिलाकर अपने विषय क्षेत्र चुनने का अधिकार हो, विद्यार्थियों हेतु अनुभव परख मूल्यांकन लागू हो, अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाए इस हेतु राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना की जाएगी। प्रोफेशनल शिक्षा सहित उच्चतर शिक्षा में लचीलापन लाया जाएगा, सार्वजनिक शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा देने हेतु छात्रवृत्ति योजनाओं में बढ़ावा वृद्धि की जाएगी, ओपन स्कूलिंग, ऑनलाइन शिक्षा तथा दूरस्थ शिक्षा पर जोर दिया गया है तथा उच्चशिक्षा के बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।

रेखा गुप्ता,

पुस्तकालयाध्यक्ष।

साक्षरता एवं शिक्षा के मौलिक अधिकार का व्यक्ति, समाज व् देश की तरक्की में योगदान

साक्षरता एवं शिक्षा के मौलिक अधिकार का व्यक्ति, समाज व् देश की तरक्की में योगदान

सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, जिसमे एक महत्वपूर्ण है साक्षरता प्राप्त करना शिक्षा प्राप्त करना एवं अपने लिए जीविका के अवसर तैयार करना ।

यह हमारी नयी शिक्षा नीति का सबसे मुख्य भाग कहा जा सकता है क्योंकि यह सबके लिए ज्ञान के द्वार खोलकर समाज में अपने को स्थापित करने की राह दिखाता है ।

साथ ही साथ यहाँ पर जीविकोपार्जन को भी परिलक्षित किया गया है जिससे नागरिकों में आत्मसम्मान का भाव बढे व वे समाज और राष्ट्र की तरक्की में अपना योगदान दे सके।

हम समझेंगे तो पाएंगे की साक्षरता एवं बुनियादी शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को ना सिर्फ निजी तौर पर आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है बल्कि साथ ही साथ पेशेवर स्तर पर भी आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करती है ।

यदि हम इन सबका गहन अध्ययन करेंगे तो पाएंगे की इन दोनों कार्यों से देश में किये जा रहे लगभग सभी तरह के विकास कार्यों एवं सामाजिक उत्थान के समस्त कार्यों को एक नयी दिशा प्राप्त होती है ।

यदि हम विश्व स्तर पर आंकड़ों को देखेंगे तो यह स्पष्ट  होता है कि किसी भी देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी एवं साक्षरता में सीधा सम्बंध होता है  

किसी भी देश के अधिक नागरिकों का साक्षर ना होना कई विषमताओं को जन्म देता है और इससे व्यक्तोगत, सामाजिक और आर्थिक नुक्सान होते हैं जिनका आकलन सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता है 

डॉ. रीता शर्मा

सहायक प्राध्यापक

Professional Education


Professional education is an integral part of the overall higher education system. Agricultural universities, legal universities, health science universities, technical universities, and institutions in other fields, shall aim to become multidisciplinary institutions.

Following are the fields in Professional Education covered by the NEP 2020:1. Agricultural Education & Veterinary Sciences Agricultural education with allied disciplines will be revived. Although Agricultural Universities comprise approximately 9% of all universities in the country, enrolment in agriculture and allied sciences is less than 1% of all enrolment in higher education. Both capacity and quality of agriculture and allied disciplines must be improved in order to increase agricultural productivity through better-skilled graduates and technicians, innovative research, and market-based extension linked to technologies and practices. The preparation of professionals in agriculture and veterinary sciences through programmes integrated with general education will be increased sharply. The design of agricultural education will shift towards developing professionals with the ability to understand and use local knowledge, traditional knowledge, and emerging technologies while being cognizant of critical issues such as declining land productivity, climate change, food sufficiency for our growing population, etc. Institutions offering agricultural education must benefit the local community directly; one approach could be to set up Agricultural Technology Parks to promote technology incubation and dissemination and promote sustainable methodologies.2. Legal Education Legal education needs to be competitive globally, adopting best practices and embracing new technologies for wider access to and timely delivery of justice. At the same time, it must be informed and illuminated with Constitutional values of Justice – Social, Economic, and Political – and directed towards national reconstruction through instrumentation of democracy, the rule of law, and human rights. The curricula for legal studies must reflect socio-cultural contexts along with, in an evidence-based manner, the history of legal thinking, principles of justice, the practice of jurisprudence, and other related content appropriately and adequately. State institutions offering law education must consider offering bilingual education for future lawyers and judges – in English and in the language of the State in which the institution is situated.3. Healthcare Education Healthcare education needs to be re-envisioned so that the duration, structure, and design of the educational programmes need to match the role requirements that graduates will play. Students will be assessed at regular intervals on well-defined parameters primarily required for working in primary care and in secondary hospitals. Given that people exercise pluralistic choices in healthcare, our healthcare education system must be integrative meaning thereby that all students of allopathic medical education must have a basic understanding of Ayurveda, Yoga and Naturopathy, Unani, Siddha, and Homeopathy (AYUSH), and vice versa. There shall also be a much greater emphasis on preventive healthcare and community medicine in all forms of healthcare education.4. Technical Education Technical education includes degree and diploma programmes in, engineering, technology, management, architecture, town planning, pharmacy, hotel management, catering technology, etc., which are critical to India’s overall development. There will not only be greater demand for well-qualified manpower in these sectors, but it will also require closer collaborations between industry and higher education institutions to drive innovation and research in these fields. Furthermore, the influence of technology on human endeavours is expected to erode the silos between technical education and other disciplines too. Technical education will, thus, also aim to be offered within multidisciplinary education institutions and programmes and have a renewed focus on opportunities to engage deeply with other disciplines.The focus will also be in preparing Professionals in cutting-edge areas that are fast gaining prominences, such as Artificial Intelligence (AI), 3-D machining, big data analysis, and machine learning, in addition to genomic studies, biotechnology, nanotechnology, neuroscience, with important applications to health, environment, and sustainable living that will be woven into undergraduate education for enhancing the employability of the youth.Overall, the NEP 2020 addresses the need to develop professionals in a variety of fields ranging from Agriculture to Artificial Intelligence. India needs to be ready for the future. And the NEP 2020 paves the way ahead for many young aspiring students to be equipped with the right skillset. Its proper implementation will be the key to its success.

Ms. Preeti Jain,

Assistant Professor,

Physics.

National Education Policy

Part III- Higher EducationPoint 17- Catalysing Quality Academic Research in All Fields through a new National Research Foundation.India has a long historical tradition of research and knowledge creation in discipline ranging from science and mathematics to art and literature to phonetics and language to medicine and agriculture. Knowledge creation and research are critical in growing and sustaining a large and vibrant economy, uplifting society and continuously inspiring a nation to achieve even greater heights. A robust ecosystem to research is perhaps more important than ever with the rapid changes occurring in the world today. Facing and addressing these challenges will require high- quality interdisciplinary research across fields that must be done in India. Research in the arts and humanities, along with innovations in the science and social science are extremely important for the progress and enlightened nature of a nation. Research and innovation at education institutions in India, particularly those that are engaged in higher education, is critical. This policy envisions a comprehensive approach to transforming the quality and quantity of research in India. The primary activities of the NRF will be to fund competitive, peer- reviewed grant proposals of all types and across all disciplines, recognize outstanding research and progress

Ms. Himani Agarwal 

Assistant professor

Maths.

विषय-"भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन"


 भारत संस्कृति का समृद्ध भंडार है जो हजारों वर्षों में विकसित हुआ है  और यहां की कला  साहित्यिक, कृतियों, प्रथाओं, परंपराओं एवं  सांस्कृतिक  धरोहर  के स्थलों इत्यादि में परिलक्षित  होता हुआ दिखता है । सभी स्कूली  स्तरों पर संगीत, कला और हस्त कौशल पर बल देना, बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करने के लिए त्रिभाषा फार्मूला का  जल्द क्रियान्वयन, साथ ही जब संभव हो मातृभाषा, स्थानीय भाषा में शिक्षण तथा अधिक अनुभव- आधारित भाषा शिक्षण उत्कृष्ट स्थानीय कलाकारों, लेखकों, हस्त कलाकारों एवं अन्य विशेषज्ञों को  स्थानीय विशेषज्ञता के विभिन्न विषयों में प्रशिक्षक के रूप में स्कूलों से जोड़ना, संगीत, कला, खेल में पारंपरिक भारतीय ज्ञान का समावेश करना, जब भी ऐसा करना प्रासंगिक हो, पाठ्य चर्चा में अधिक  लचीलापन, विशेषकर माध्यमिक स्कूल में और उच्चतर शिक्षा में ताकि विद्यार्थी एक आदर्श संतुलन कायम रखते हुए अपने लिए कोर्स का चुनावकर सकें जिससे वे  स्वयं के सृजनात्मक, कलात्मक, सांस्कृतिक एवं अकादमिक आयामों का विकास कर सके आदि शामिल है ।

 डॉ. पूजा शर्मा

 सहायक आचार्य

 संगीत विभाग ।


17 अप्रैल-‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’

17 अप्रैल-‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’

"माना कि बहना ज़िंदगी है, तो ठहरना भी ज़रूरी है।
खून हो या पानी, वक़्त के साथ थमना भी ज़रूरी है।"
                          मधुवंदन

लोगों की जागरूकता से किसी बीमारी से लड़ा जा सकता है जैसे कि इन दिनों समूचा विश्व कोरोनावायरस की चपेट में आ चुका है।सरकारें बहुत प्रयास कर रहीं हैं पर कोरोना की इस वीभत्स भयंकर महामारी से लड़ने के लिए केवल सरकार के प्रयास काफी नहीं है, बल्कि इस बीमारी के प्रति लोगों की जागरूकता काफी महत्त्वपूर्ण है। ठीक इसी प्रकार आपको हीमोफिलिया का भी ध्यान रखना है।

प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल को ‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल यह दिवस दुनिया भर में हीमोफिलिया और विरासत में मिले अन्य रक्तस्राव विकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मान्यता प्राप्त है। 
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के संस्थापक फ्रैंक कैनबेल के जन्मदिन के उपलक्ष्य में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1989 में की गई थी। 

हीमोफिलिया क्या है?
हीमोफिलिया खून के थक्के बनने की क्षमता को प्रभावित करने वाला एक आनुवंशिक रोग है। हिंदी में इसे पैतृक रक्तस्राव कहा जाता है। इसमें कोई चोट लगने पर शरीर से बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट जानलेवा साबित होती है, क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता और अधिक रक्तस्राव के कारण रोगी की मृत्यु हो सकती है।

कारण-
वस्तुतःहीमोफिलिया के तीन रूप बताए जाते हैं। यह ए, बी और सी जीन्स में दोष के कारण होता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।

ध्यातव्य है कि इस रोग के अधिकांशतः पुरुष पीड़ित होते हैं और महिलाएँ इस बीमारी की वाहक होती हैं। विभिन्न शोधों से पता चलता है कि इस प्रकार की बीमारी घर के अन्य पुरुषों को भी होती है तथा यह बीमारी पीढ़ियों तक चलती रहती है।

लक्षण- 
शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आंख के अंदर खून का निकलना,जोड़ों की सूजन, गंभीर सिरदर्द, लगातार उल्टी, गर्दन का दर्द, अत्यधिक नींद और चोट से लगातार खून बहना आदि।

बचाव के उपाय-
हीमोफिलिया लाइलाज़ बीमारी है। अतः आइए, आज आपको हीमोफिलिया दिवस के इस पुण्य पवन अवसर पर हीमोफीलिया के बचाव के उपाय बताते हैं- 
-1.हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि आपके दांत और मसूड़ों से खून निकलता है तो इसे नज़रअंदाज़ न करें, तुंरत डेंटिस्ट के पास जाएं।
-2.यदि हड्डियों में चोट लगती है तो पेन किलर लेने के पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लें, क्योंकि इसकी वजह से भी आगे चलकर हीमोफीलिया हो सकता है।
3.ब्ल्ड इंफेक्शन के कारण होने वाली बीमारियों और उनके टीकाकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करें साथ ही इसकी जांच भी करवाएं। हेपेटाइटिस ए और बी की वैक्सीन के बारे में डॉक्टर से सलाह लें।
4. ब्लड-थिनिंग दवा लेने से बचें। एस्पिरिन और इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दवाओं का सेवन बिना डॉक्टर के परामर्श के न करें।
5.अपनी डायट में विटामिन और मिनरल्स से भरपूर चीज़ें शामिल करें।
6.रोज़ाना एक्सरसाइज और योग करें।
7.रक्तदान जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए, जिससे समय पर इन रोगियों के लिए रक्त उपलब्ध रहे।

हम भारतीय खुशकिस्मत हैं कि भारत में इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या कम है, पर भविष्य न बढ़े और  विश्व समुदाय के हितार्थ हमको यह 'हीमोफिलिया जागरूकता अभियान' जारी रखना है।
इतिश्री,......
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

।।गणगौर।।

।।गणगौर।।

"लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो,
झर झरती जलेबी ल्यो , हरी -हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो।"

कहावत है कि 'तीज तींवारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर।' अर्थात तीज का त्योहार, त्योहारों का आगमन का प्रतीक है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम लग जाता है।

'गणगौर' त्यौहार में शिव के अवतार के रूप में गण(ईसर) और पार्वती के अवतार के रूप में गौरा माता का पूजन किया जाता है। यह त्योहार होली के दूसरे दिन से शुरू होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पन्न होता है। 

लोक में ऐसी कथा प्रचलित है कि एक समय पार्वती जी ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी का शिव जी से विवाह हो गया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है।

सोलह दिन तक ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करके कन्याएँ, नवविवाहिताएँ व सुहागिन महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर हर रोज तालाब या नदी और बाड़ी बगीचे में जाती हैं। हरी घास-दूब व रंग-बिरंगे फूल लेकर गौरा के गीत गाते हुए, अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की पूजा आराधना करती हैं। दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है | 

माना जाता है कि आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहाँ से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती हैं। उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालिन,आदि की मूर्तियाँ बनाती हैं। 

जहाँ पूजा की जाती है, उस स्थान को गणगौर का पीहर तथा जहाँ विसर्जित की जाती है, वह स्थान ससुराल माना जाता है। चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। 

इस पर्व से जुड़ी एक रोचक मान्यता मैं आज आपको बताती हूँ-
गणगौर मुख्यत: महिलाओं का त्योहार है। पूजा अर्चना के बाद गणगौर का मीठे गुणों का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को इस पूजन का फल समझा जाता है। इसलिए इसे ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को ही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह पुरुषों को नहीं देना चाहिए।

गणगौर रां इण पावण और रंगरंगीलों तींवार माथे म्हारी थां सगळां ने खूब खूब शुभकामना।  इण पोस्ट ने पढ़न वालाँ, सुणन वाला और हुंकारा भरण वाला  के सागे कमेंट और शेयर करण वालां की माता गणगौर सगळी मनोकामनाएं पूरी करसी । 
थां सबने गणगौर माता अखंड सुहाग देसी। जैंयाँ पार्वती ने भोला शिव शंकर मिल्या, थाने सगळां ने खूब प्यार करन वालों पति मिले और सगळी सुहागण को सुहाग अखंड बण्यो रहवे। ई आसीस के सागे सगळां ने राम राम।
।।मधुवंदन।।
        ।।गणगौर माता की जय।।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

मलेरिया दिवस

मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है।इसे 'दलदली बुखार' अंग्रेजी में marsh fever(मार्श फ़ीवर)भी कहा जाता था, क्योंकि यह दलदली क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैलता था। 
आज हम सब जानते हैं कि मलेरिया मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से होता है। पर 1898 से पहले किसी को भनक भी नही थी कि यह मलेरिया आखिर फैलता कैसे है?
1898  पहली बार यह दावा किया गया कि मच्छर ही मलेरिया रोग को एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य तक फैलाते हैं। किंतु इसे अकाट्य रूप प्रमाणित करने का कार्य ब्रिटेन के *सर रोनाल्ड रॉस ने  भारत के सिकंदराबाद शहर में काम करते हुए,* 1898 में किया था। इन्होंने मच्छरों की विशेष जातियों से पक्षियों को कटवा कर, उन मच्छरों की लार ग्रंथियों से परजीवी अलग कर के दिखाया, जिन्हें उन्होंने संक्रमित पक्षियों में पाला था। इस कार्य हेतु उन्हें *1902 का चिकित्सा नोबेल पुरस्कार* मिला।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।