।।गणगौर।।
"लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो,
झर झरती जलेबी ल्यो , हरी -हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो।"
कहावत है कि 'तीज तींवारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर।' अर्थात तीज का त्योहार, त्योहारों का आगमन का प्रतीक है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम लग जाता है।
'गणगौर' त्यौहार में शिव के अवतार के रूप में गण(ईसर) और पार्वती के अवतार के रूप में गौरा माता का पूजन किया जाता है। यह त्योहार होली के दूसरे दिन से शुरू होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पन्न होता है।
लोक में ऐसी कथा प्रचलित है कि एक समय पार्वती जी ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी का शिव जी से विवाह हो गया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है।
सोलह दिन तक ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करके कन्याएँ, नवविवाहिताएँ व सुहागिन महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर हर रोज तालाब या नदी और बाड़ी बगीचे में जाती हैं। हरी घास-दूब व रंग-बिरंगे फूल लेकर गौरा के गीत गाते हुए, अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की पूजा आराधना करती हैं। दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है |
माना जाता है कि आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहाँ से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती हैं। उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालिन,आदि की मूर्तियाँ बनाती हैं।
जहाँ पूजा की जाती है, उस स्थान को गणगौर का पीहर तथा जहाँ विसर्जित की जाती है, वह स्थान ससुराल माना जाता है। चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
इस पर्व से जुड़ी एक रोचक मान्यता मैं आज आपको बताती हूँ-
गणगौर मुख्यत: महिलाओं का त्योहार है। पूजा अर्चना के बाद गणगौर का मीठे गुणों का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को इस पूजन का फल समझा जाता है। इसलिए इसे ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को ही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह पुरुषों को नहीं देना चाहिए।
गणगौर रां इण पावण और रंगरंगीलों तींवार माथे म्हारी थां सगळां ने खूब खूब शुभकामना। इण पोस्ट ने पढ़न वालाँ, सुणन वाला और हुंकारा भरण वाला के सागे कमेंट और शेयर करण वालां की माता गणगौर सगळी मनोकामनाएं पूरी करसी ।
थां सबने गणगौर माता अखंड सुहाग देसी। जैंयाँ पार्वती ने भोला शिव शंकर मिल्या, थाने सगळां ने खूब प्यार करन वालों पति मिले और सगळी सुहागण को सुहाग अखंड बण्यो रहवे। ई आसीस के सागे सगळां ने राम राम।
।।मधुवंदन।।
।।गणगौर माता की जय।।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।
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