21 अप्रैल,'सिविल सेवा दिवस'*

*21 अप्रैल,'सिविल सेवा दिवस'* 
'सिविल सेवा' किसी भी देश के प्रशासनिक तंत्र की रीड की हड्डी मानी जाती है।  भारतीय संसदीय लोकतंत्र में भी संविधान द्वारा निर्धारित कार्यकारी निर्णय इन सिविल सेवकों द्वारा ही कार्यान्वित किए जाते हैं। 
आज ही के दिन, 21 अप्रैल 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं का उद्घाटन करते हुए, भारतीय लोक सेवा के पहले दल को 'स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया' के नाम से संबोधित किया था। स्वतंत्र भारत में सन 1950 से सिविल सेवाएं परीक्षाएं प्रारंभ हुई तथा 2006 से नियमित रूप से हर वर्ष 'सिविल सेवा दिवस' मनाया जाने लगा इसका उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्यों को नागरिकों के लिए समर्पित और वचनबद्ध कार्यों के लिए प्रेरित करना है। इन सिविल सेवकों के पास पारंपरिक और सांविधिक दायित्व भी होते हैं, जो कि कुछ हद तक सत्ता में किसी राजनीतिक पार्टी को अपनी राजनीतिक शक्ति का अनुचित लाभ उठाने एवं उसका निजी हित में इस्तेमाल करने से बचाता है। इस अवसर पर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा उत्कृष्ट सिविल सेवा देने वाले अधिकारियों को प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाता है।


आज इस गौरवपूर्ण दिवस पर मैं आपको जीवट और संघर्ष की प्रतीक बन कर उभरी उस लौह महिला की कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो भारत की पहली आई.ए.एस. महिला थी। ...सुनेंगे?
...तो यह पॉडकास्ट आपके लिए ही है-

इसे सम्मान दो थोड़ा तो ये इतिहास बना लेगी
करो विश्वास इनपर पूरा विश्वास पा लेगी
कभी जीवन में  इनको नज़रअंदाज़ मत करना
जरा से पंख खोलोगे ये आकाश सजा लेगी

जी हां आज मैं आपको 
17 जुलाई, 1927 को जन्म केरल के एक गांव में जन्मी उस लौह महिला की कहानी सुनाने जा रही हूं, जिसका नाम है अन्ना राजम मल्होत्रा, जो कालीकट में बड़ी हुईं और प्रोविडेंस महिला कॉलेज से अपनी मध्यवर्ती शिक्षा पूरी की। कालीकट के मालाबार ईसाई कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, अन्ना मद्रास चली गईं जहां उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की।

ऐसे वक्त में जब ज्यादातर भारतीय महिलाएं शादी कर लेने को ही अपने युवा जीवन का उद्देश्य समझती थीं,  कलेक्टर पति     ।।।
उनमें से किसी ने भी सिविल सेवा में शामिल होने की कोशिश तो क्या कल्पना ही नहीं कीं, तब अन्ना राजम मल्होत्रा भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी की राह पर बढ़ी। वह सचिवालय में पद प्राप्त करने वाली भी पहली महिला थीं।  अन्ना को खूब परेशान किया गया, वो औरत थीं इसलिए उनकी काबिलियत पर हमेशा शक किया गया। यहां तक कि उनकी महिला सहकर्मी भी उनके निर्णय का मजाक उड़ाती थीं। लेकिन अन्ना ने किसी की एक न सुनी। 

मेरे होंसलों की बात न कर,
वो आसमान से भी ऊँचे हैं।
बात उस उड़ान की अब कर,
जिसे नित नए आयाम छूने हैं।

वो बस अपने राह चलती रहीं। एक दिन उन्होंने इतिहास रच ही दिया। उन्होंने 1950 में सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास की थी। उनकी प्रतिभा के बावजूद पैनल ने उन्हें फॉरेन सर्विसेज या फिर सेंट्रल सर्विसेज ज्वॉइन करने की सलाह दे डाली, सिर्फ इसलिए कि उनके हिसाब से ये क्षेत्र महिलाओं के लिए ज्यादा मुफीद थे। लेकिन अन्ना वहां भी नहीं झुकीं। 

मेरे होंसले हठीले,
कब कहाँ किसकी वो सुनते हैं।
फ़लक पर जा बैठे,
और धरती को एकटक तकते हैं।

उनके अपॉइंटमेंट पर उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री सी राजगोपालाचारी ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट सब कलेक्टर बनाने की बजाय सीधे सचिवालय में नियुक्त कर दिया। 
अन्ना केवल पढ़ाई में ही स्ट्रॉन्ग नहीं थीं बल्कि उन्होंने रायफल, पिस्टल शूटिंग, घुड़सवारी में भी फुल ट्रेन्ड थीं। वो चाहती थीं कि वो किसी भी तरह अपने पुरुष सहकर्मियों से कमतर न रहें। लैंगिक भेदभाव किस कदर हावी था, ये बताता है अन्ना को दिया गया एक एग्रीमेंट। जिसमें लिखा था कि अन्ना सर्विस के दौरान शादी नहीं कर सकतीं, अगर वो शादी करती हैं तो सर्विस टर्मिनेट हो जाएगी। ऐसा कोई नियम पुरुषों के लिए नहीं था, केवल महिलाओं के लिए ही ये बाधा बना दी गई थी। हालांकि कुछ सालों बाद ये नियम हटा लिया गया। उन्होंने  तमिलनाडु के सात मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया, बाद उन्होंने   से विवाह किया जो से तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। एना को 1989 में उत्कृष्ट सिविल सेवाओं के लिए भारत सरकार ने पदम विभूषण से सम्मानित किया।

अन्ना के नेतृत्व में देश का पहला कम्प्यूटराइज्ड कंटेनर पोर्ट बनावाया गया था। ये पोर्ट मुंबई था और जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह के नाम से जाना जाता है। 1982 में उन्होंने पंडित नेहरू को एशियाड सम्मेलन में असिस्ट भी किया था। वो इंदिरा गांधी के साथ फूड प्रोडक्शन पैटर्न को समझने के लिए आठ राज्यों की यात्रा पर भी गई थीं। बड़ी बात ये है कि उस वक्त उनका टखना टूटा हुआ था। 

घनी अंधियारी रातों में ही,
बिजलियाँ चमकी हैं।
सर के परे निकला जब पानी 
बदलियां बरसी हैं।
यह सुना और देखभाला
अनुभवजन्य सत्य है।
ख़ुद फूटे और धरती चीरी,
तब बीज से फसलें उपजी है।

एक बार क्या हुआ कि एक गांव में हाथियों का बड़ा आतंक फैल गया था। अन्ना पर दबाव था कि वो हाथियों को मारने का आदेश दे दें। लेकिन अन्ना कैसे निरीह जानवरों की हत्या करवा सकती थीं। हाथियों की तो गलती केवल इतनी थी कि वो अपने घर अर्थात जंगलों में मनुष्यों की  बेजां  दखलंदाजी से तंग आकर बाहर बस्तियों में आ गए थे। अन्ना ने बड़ी ही सूझबूझ और अपने जीव व्यवहार के ज्ञान से उनको वापस जंगल भेज दिया था। उनके कारनामे से हर कोई हैरानी में था। 

 अपने करियर के दौरान, अन्ना राजाम मल्होत्रा ने साबित कर दिया कि वो इस सफलता के लिए हर तरह से योग्य थीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि लैंगिक भेदभाव का  समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिये। उनकी जीवनशैली दिखाती हैं कि महिलाओं को अवसरों की जरूरत है, संरक्षण नहीं।

मीरा की अमर भक्ति ज़हर से मर नहीं सकती
झाँसी वाली रानी है किसी से डर नहीं सकती
मदर टेरेसा, या हो कल्पना या सानिया चाहे मेरी कॉम हो
असम्भव क्या है दुनियां में जो नारी कर नहीं सकती

उन्होंने राजनीतिक शख्सियत बनने से इनकार कर दिया और भारत के कुछ सबसे शक्तिशाली नेताओं के सामने भी कभी नहीं झुकीं। उनका ये व्यवहार देश के तमाम नौकरशाहों के सामने एक उदाहरण रखता है।
डॉ. मधु गुप्ता,
सह-आचार्य,
हिंदी विभाग।

No comments:

Post a Comment