*_2 अप्रैल- विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस_*
2, अप्रैल को प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 'विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस' मनाया जाता है। इस वर्ष 13 वां वार्षिक विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है।
*उद्देश्य-*
इस दिन को ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों को इससे लड़ने तथा इसका निदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे समाज में अन्य लोगों की तरह पूर्ण और सार्थक जीवन जी सकें। वर्ष 2008 में 2 अप्रैल को पहला विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया गया था।
*क्या है ऑटिज़्म-* ?
*_"खुद में खोकर, खुद सा होकर, मन खुद से हो बागी हो गया।
दुनिया बसाकर अपनी दुनिया से अलग बेखबर बैरागी हो गया।"_*
खुद में मस्त रहना खूबी है, पर सारी दुनिया से कटकर खुदी में डूबे रहना उदासीनता है, जो व्यक्ति के मानसिक और सामाजिक विकास में बाधक है, जिसे चिकित्सक *ऑटिज्म* कहते हैं।ऑटिज्म यानी स्वलीनता के शिकार बच्चे अपने आप में खोए से रहते हैं। सामान्य तौर कई वैज्ञानिक इसे बीमारी नहीं कहते।
**विशिष्टता-*
कुछ मामलों में ये लोग अद्भुत प्रतिभा वाले होते हैं। इन लोगों में बोलने और इशारों में संपर्क की समस्या के साथ कुछ बड़ी विचित्र खूबियां होती हैं।
*कारण-*
इस समस्या के लिए आनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कई कारण जिम्मेदार होते हैं। माना जाता है कि सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने से यह दिक्कत होती है। कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है।
*उपचार-*
विशेषज्ञों का कहना है की ऑटिज्म की स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए बेहद शुरुआती स्तर से देखभाल शुरू करनी चाहिए। इसमें सबसे पहले घरेलू या सामाजिक स्तर पर स्वीकृति होनी चाहिए। बच्चे को अपने माता-पिता का समय और परिवार के बुजुर्गों का ध्यान व प्यार चाहिए होता है। इससे वह सुरक्षित और आत्मनिर्भर महसूस करता है। उसे जितना हो सके टीवी, मोबाइल और टैबलेट से दूर रखना चाहिए। इनके स्थान पर उनमें खिलौनों, किताबों और घर में कुछ रोचक खेल खेलने की आदत डालनी चाहिए।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।
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