17 अप्रैल-‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’

17 अप्रैल-‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’

"माना कि बहना ज़िंदगी है, तो ठहरना भी ज़रूरी है।
खून हो या पानी, वक़्त के साथ थमना भी ज़रूरी है।"
                          मधुवंदन

लोगों की जागरूकता से किसी बीमारी से लड़ा जा सकता है जैसे कि इन दिनों समूचा विश्व कोरोनावायरस की चपेट में आ चुका है।सरकारें बहुत प्रयास कर रहीं हैं पर कोरोना की इस वीभत्स भयंकर महामारी से लड़ने के लिए केवल सरकार के प्रयास काफी नहीं है, बल्कि इस बीमारी के प्रति लोगों की जागरूकता काफी महत्त्वपूर्ण है। ठीक इसी प्रकार आपको हीमोफिलिया का भी ध्यान रखना है।

प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल को ‘विश्व हीमोफीलिया दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल यह दिवस दुनिया भर में हीमोफिलिया और विरासत में मिले अन्य रक्तस्राव विकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मान्यता प्राप्त है। 
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया के संस्थापक फ्रैंक कैनबेल के जन्मदिन के उपलक्ष्य में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत 1989 में की गई थी। 

हीमोफिलिया क्या है?
हीमोफिलिया खून के थक्के बनने की क्षमता को प्रभावित करने वाला एक आनुवंशिक रोग है। हिंदी में इसे पैतृक रक्तस्राव कहा जाता है। इसमें कोई चोट लगने पर शरीर से बहता हुआ रक्त जमता नहीं है। इसके कारण चोट जानलेवा साबित होती है, क्योंकि रक्त का बहना जल्द ही बंद नहीं होता और अधिक रक्तस्राव के कारण रोगी की मृत्यु हो सकती है।

कारण-
वस्तुतःहीमोफिलिया के तीन रूप बताए जाते हैं। यह ए, बी और सी जीन्स में दोष के कारण होता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग का कारण एक रक्त प्रोटीन की कमी होती है, जिसे 'क्लॉटिंग फैक्टर' कहा जाता है। इस फैक्टर की विशेषता यह है कि यह बहते हुए रक्त के थक्के जमाकर उसका बहना रोकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बीमारी रक्त में थ्राम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक पदार्थ की कमी से होती है। थ्राम्बोप्लास्टिक में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है। खून में इसके न होने से खून का बहना बंद नहीं होता है।

ध्यातव्य है कि इस रोग के अधिकांशतः पुरुष पीड़ित होते हैं और महिलाएँ इस बीमारी की वाहक होती हैं। विभिन्न शोधों से पता चलता है कि इस प्रकार की बीमारी घर के अन्य पुरुषों को भी होती है तथा यह बीमारी पीढ़ियों तक चलती रहती है।

लक्षण- 
शरीर में नीले नीले निशानों का बनना, नाक से खून का बहना, आंख के अंदर खून का निकलना,जोड़ों की सूजन, गंभीर सिरदर्द, लगातार उल्टी, गर्दन का दर्द, अत्यधिक नींद और चोट से लगातार खून बहना आदि।

बचाव के उपाय-
हीमोफिलिया लाइलाज़ बीमारी है। अतः आइए, आज आपको हीमोफिलिया दिवस के इस पुण्य पवन अवसर पर हीमोफीलिया के बचाव के उपाय बताते हैं- 
-1.हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि आपके दांत और मसूड़ों से खून निकलता है तो इसे नज़रअंदाज़ न करें, तुंरत डेंटिस्ट के पास जाएं।
-2.यदि हड्डियों में चोट लगती है तो पेन किलर लेने के पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लें, क्योंकि इसकी वजह से भी आगे चलकर हीमोफीलिया हो सकता है।
3.ब्ल्ड इंफेक्शन के कारण होने वाली बीमारियों और उनके टीकाकरण के बारे में जानकारी प्राप्त करें साथ ही इसकी जांच भी करवाएं। हेपेटाइटिस ए और बी की वैक्सीन के बारे में डॉक्टर से सलाह लें।
4. ब्लड-थिनिंग दवा लेने से बचें। एस्पिरिन और इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दवाओं का सेवन बिना डॉक्टर के परामर्श के न करें।
5.अपनी डायट में विटामिन और मिनरल्स से भरपूर चीज़ें शामिल करें।
6.रोज़ाना एक्सरसाइज और योग करें।
7.रक्तदान जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए, जिससे समय पर इन रोगियों के लिए रक्त उपलब्ध रहे।

हम भारतीय खुशकिस्मत हैं कि भारत में इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या कम है, पर भविष्य न बढ़े और  विश्व समुदाय के हितार्थ हमको यह 'हीमोफिलिया जागरूकता अभियान' जारी रखना है।
इतिश्री,......
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

।।गणगौर।।

।।गणगौर।।

"लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो,
झर झरती जलेबी ल्यो , हरी -हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो।"

कहावत है कि 'तीज तींवारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर।' अर्थात तीज का त्योहार, त्योहारों का आगमन का प्रतीक है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम लग जाता है।

'गणगौर' त्यौहार में शिव के अवतार के रूप में गण(ईसर) और पार्वती के अवतार के रूप में गौरा माता का पूजन किया जाता है। यह त्योहार होली के दूसरे दिन से शुरू होकर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पन्न होता है। 

लोक में ऐसी कथा प्रचलित है कि एक समय पार्वती जी ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी का शिव जी से विवाह हो गया। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है।

सोलह दिन तक ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठकर स्नान करके कन्याएँ, नवविवाहिताएँ व सुहागिन महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर हर रोज तालाब या नदी और बाड़ी बगीचे में जाती हैं। हरी घास-दूब व रंग-बिरंगे फूल लेकर गौरा के गीत गाते हुए, अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की पूजा आराधना करती हैं। दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है | 

माना जाता है कि आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहाँ से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती हैं। उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालिन,आदि की मूर्तियाँ बनाती हैं। 

जहाँ पूजा की जाती है, उस स्थान को गणगौर का पीहर तथा जहाँ विसर्जित की जाती है, वह स्थान ससुराल माना जाता है। चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। 

इस पर्व से जुड़ी एक रोचक मान्यता मैं आज आपको बताती हूँ-
गणगौर मुख्यत: महिलाओं का त्योहार है। पूजा अर्चना के बाद गणगौर का मीठे गुणों का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को इस पूजन का फल समझा जाता है। इसलिए इसे ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को ही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह पुरुषों को नहीं देना चाहिए।

गणगौर रां इण पावण और रंगरंगीलों तींवार माथे म्हारी थां सगळां ने खूब खूब शुभकामना।  इण पोस्ट ने पढ़न वालाँ, सुणन वाला और हुंकारा भरण वाला  के सागे कमेंट और शेयर करण वालां की माता गणगौर सगळी मनोकामनाएं पूरी करसी । 
थां सबने गणगौर माता अखंड सुहाग देसी। जैंयाँ पार्वती ने भोला शिव शंकर मिल्या, थाने सगळां ने खूब प्यार करन वालों पति मिले और सगळी सुहागण को सुहाग अखंड बण्यो रहवे। ई आसीस के सागे सगळां ने राम राम।
।।मधुवंदन।।
        ।।गणगौर माता की जय।।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

मलेरिया दिवस

मलेरिया या दुर्वात एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोज़ोआ परजीवी द्वारा फैलता है।इसे 'दलदली बुखार' अंग्रेजी में marsh fever(मार्श फ़ीवर)भी कहा जाता था, क्योंकि यह दलदली क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैलता था। 
आज हम सब जानते हैं कि मलेरिया मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से होता है। पर 1898 से पहले किसी को भनक भी नही थी कि यह मलेरिया आखिर फैलता कैसे है?
1898  पहली बार यह दावा किया गया कि मच्छर ही मलेरिया रोग को एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य तक फैलाते हैं। किंतु इसे अकाट्य रूप प्रमाणित करने का कार्य ब्रिटेन के *सर रोनाल्ड रॉस ने  भारत के सिकंदराबाद शहर में काम करते हुए,* 1898 में किया था। इन्होंने मच्छरों की विशेष जातियों से पक्षियों को कटवा कर, उन मच्छरों की लार ग्रंथियों से परजीवी अलग कर के दिखाया, जिन्हें उन्होंने संक्रमित पक्षियों में पाला था। इस कार्य हेतु उन्हें *1902 का चिकित्सा नोबेल पुरस्कार* मिला।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

! 5 अप्रैल-राष्ट्रीय समुद्र दिवस !!*

*!! 5 अप्रैल-राष्ट्रीय समुद्र दिवस !!* 

"अपनी बेबसी को मैं किसी से कह नहीं सकता,
बिखरता हूँ मीलों तलक पर मैं बह नहीं सकेता
छिपा लेता हूँ हर नदी नाले को अपने अंतर में 
समंदर हूँ, रुसवाई किसी की सह नहीं सकता।"

तो क्यों न हम एक कोशिश करें कि इस जलधि, पयोधि, रत्नों के आगार, चारों दिशाओं में व्याप्त पारावार को हर संकट हर,आँच से बचा लें।
क्या आप जानते हैं कि 5 अप्रैल को ही राष्ट्रीय समुद्र दिवस क्यों मनाया जाता है ? नहीं!
तो आइए, और गर्व कीजिए कि सन 1919 में आज ही के दिन भारत के मुंबई शहर से ब्रिटेन के लिए भारत का पहला समुद्री जहाज रवाना हुआ था। इसी ऐतिहासिक दिवस की मधुर स्मृतियों को पुनः पुनः स्मरण करने  के के लिए सन 1964 से हर 5 अप्रैल को *राष्ट्रीय समुद्र दिवस* मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को भारतीय जहाजरानी उद्योग की गतिविधिओं के साथ-साथ भारत की अर्थव्यवस्था में इसकी अतुलित भूमिका से परिचय करवाना है।
 जल परिवहन का महत्त्व कौन नहीं जानता?  प्राचीन काल में तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों में आपसी संपर्क का एकमात्र साधन जहाजरानी परिवहन विभाग ही संभालता था। इतिहास गवाह है  कि जिस देश की जल सेना और नौकायन सेवा शक्तिशाली होती थी वही विश्व पर शासन करता था। आज के बढ़ते वैश्वीकरण के  युग में और पर्यावरण  प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए जल यातायात को बढ़ावा देने हेतु भारत सरकार निरंतर प्रयास कर रही है।
 यह दिवस हमें समुद्रों की सुरक्षा, सुरक्षित शिपिंग व्यवसाय, समुद्र वातावरण की सुरक्षा, और सामुद्रिक संपत्ति व उद्योगों के विकास के बारे में न केवल जागरूक करता है, वरन  नौका परिवहन का विश्व समुदाय के बीच एक मजबूत कड़ी स्थापित करने के लिए हमें प्रेरित करता है।
 आइए आज 5 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय समुद्री दिवस के शुभ अवसर पर हम यह संकल्प लें कि समुद्रों को हर दूषन- प्रदूषण से मुक्त रखेंगे और नौका परिवहन को उत्तरोत्तर प्रोत्साहित कर पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाएंगे।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

अप्रैल-अंतर्राष्ट्रीय खदान जागरूकता दिवस*

*4 अप्रैल-अंतर्राष्ट्रीय खदान जागरूकता दिवस*  

"नसों से जिसके लोहा बरसता है
हाथों में उसके कालिमा और 
श्वांसों में धुंआता गुबार बसता है
जो खुद धूल फाँक फाँक कर 
सोना चाँदी हीरे पन्ने उगलता है
नमन उस कर्मवीर के श्रमदान को
जो खदान के खतरों से खेलता है।"

खानों में काम करने वाले मजदूरों और आस पास रहने वाले लोगों के लिए खनन एक घातक उद्योग है। खनिकों को कठिन परिस्थिति में काम करना पड़ता है। खान के अंदर नैसर्गित रोशनी नहीं मिल पाती है। खानों में हमेशा खान की छत गिरने, पानी भरने और आग लगने का खतरा रहता है। खान के आस पास के इलाकों में धूल की भारी समस्या होती है। खान से निकलने वाली स्लरी से सड़कों और खेतों को नुकसान पहुँचता है।  खनिकों को दमा की बीमारी होने का खतरा अधिक रहता है। अतः 8 दिसंबर 2005 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 4 अप्रैल को हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय खदान जागरूकता और खदान कार्य सहायता दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी. यह पहली बार 4 अप्रैल, 2006 को मनाया गया था।

 *उद्देश्य* - 
1. उन देशों में राष्ट्रीय खदान-कार्य क्षमता स्थापित करना और विकसित करने में सहायता करना, जहाँ खदानों और विस्फोटक युद्ध अवशेष सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं। 
2.इसके लिए  संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संबंधित संगठनों के साथ मिलकर प्रभावित देशों की हरसंभव सहायता करना।
3.राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य और लोगों के जीवन में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
 4. लोगों को लैंडमाइंस की वजह से पैदा हुए खतरे से सुरक्षा प्रदान करना
 5.स्वास्थ्य और जीवन से सम्बंधित परेशानियों के बारे में जागरूकता फैलाना। 
 6.साथ ही राज्य सरकारों को खदान क्लिअरिंग प्रोग्राम विकसित करने के लिए भी प्रोत्साहित करना।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

1 अप्रैल* -ओडिशा दिवस और अंधता निरोधक जागरूकता सप्ताह


*1 अप्रैल* -ओडिशा दिवस और  अंधता निरोधक जागरूकता सप्ताह का श्रीगणेश इसी दिन से होता है, साथ ही
दुनिया के लोग भले ही एक अप्रैल को एक दूसरे को मूर्ख बनाकर मजा लेते हों, लेकिन भारत के इतिहास में इस तारीख पर बड़ी घटना दर्ज हैं। सन 1935 में भारत में रिजर्व बैंक की स्थापना इसी दिन हुई ।

 *ब्लाइंडनेस अवेयरनेस वीक*
 (1 अप्रैल से 7 अप्रैल)
"जब जुबान खामोश होती है, तो आँखें बोलती हैं।"

आँखें वो नायाब तोहफा हैं कुदरत का, जिससे सारी दुनिया की देखी जा सकती है आँखो की बिना रंगों को कल्पना भी नहीं की जा सकती।  अतः आँखों के बारे में जानना व इनकी सुरक्षा करना भी जरूरी है। वर्तमान समय में बदलते लाइफ स्टाइल और अनियमित दिनचर्या प्रदूषण तथा मानसिक तनाव की अधिकता से अधिकांश लोग आँखों से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
अतः आँखों की रोशनी के बारे में जागरूकता के उद्देश्य से हर साल 1 से 7 अप्रैल को ब्लाइंडनेस अवेयरनेस वीक के रूप में मनाया जाता है। इस सप्ताह के दौरान आँखों की देखभाल और आँखों से जुड़ी बीमारियों से बचाव पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए  जाते हैं।

आइए, हम अपनी इन कमल सी, मृग जैसी, खंजन सम आँखों की सुरक्षा के लिए कुछ व्यायाम करें-

1.अपनी आँख की पुतलियों को दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे करने के साथ ही चारों ओर घुमाएं, इससे आंखों का व्यायाम होता है।
 
2.. अपने अंगूठे को आँखों की सीध में दोनों भौंओं के बीच रखें और कुछ समय तक आँखों को उसी बिंदु पर टिकाए रखें।
 
3.. दीवार पर आँखों की सीध में किसी बिंदु पर ध्यान केंद्रित करें और इसे कम समय से लेकर धीरे-धीरे अधि‍क समय तक करने का प्रयास करें।
 
4.. दीपक की लौ को एकटक निहारने की प्रक्रिया को त्राटक कहते हैं। यह प्रक्रिया आँखों की क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ एकाग्रता में भी वृद्धि‍ करती है।
 
5.. सुबह के समय हरी घास पर चलना आँखों के लिए फायदेमंद होता है। खास तौर से जब घास पर ओस जमी हो। कुछ समय घास पर चहलकदमी के लिए भी जरूर निकालें।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

_2 अप्रैल- विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस_*

*_2 अप्रैल- विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस_* 

 2, अप्रैल को प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 'विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस' मनाया जाता है। इस वर्ष 13 वां वार्षिक विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है।
 *उद्देश्य-* 
इस दिन को ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों को इससे लड़ने तथा इसका निदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे समाज में अन्य लोगों की तरह पूर्ण और सार्थक जीवन जी सकें। वर्ष 2008 में 2 अप्रैल को पहला विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया गया था।

*क्या है ऑटिज़्म-* ?
 *_"खुद में खोकर, खुद सा होकर, मन खुद से हो बागी हो गया।
दुनिया बसाकर अपनी दुनिया से अलग बेखबर बैरागी हो गया।"_* 
 
खुद में मस्त रहना खूबी है, पर सारी दुनिया से कटकर खुदी में डूबे रहना उदासीनता है, जो व्यक्ति के मानसिक और सामाजिक विकास में बाधक है, जिसे चिकित्सक *ऑटिज्म* कहते हैं।ऑटिज्म यानी स्वलीनता के शिकार बच्चे अपने आप में खोए से रहते हैं। सामान्य तौर कई वैज्ञानिक इसे बीमारी नहीं कहते।
 **विशिष्टता-* 
कुछ मामलों में ये लोग अद्भुत प्रतिभा वाले होते हैं। इन लोगों में बोलने और इशारों में संपर्क की समस्या के साथ कुछ बड़ी विचित्र खूबियां होती हैं।
 *कारण-* 
इस समस्या के लिए आनुवांशिक और पर्यावरण संबंधी कई कारण जिम्मेदार होते हैं। माना जाता है कि सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने से यह दिक्कत होती है। कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है।
  *उपचार-* 
विशेषज्ञों का कहना है की ऑटिज्म की स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए बेहद शुरुआती स्तर से देखभाल शुरू करनी चाहिए। इसमें सबसे पहले घरेलू या सामाजिक स्तर पर स्वीकृति होनी चाहिए। बच्चे को अपने माता-पिता का समय और परिवार के बुजुर्गों का ध्यान व प्यार चाहिए होता है। इससे वह सुरक्षित और आत्मनिर्भर महसूस करता है। उसे जितना हो सके टीवी, मोबाइल और टैबलेट से दूर रखना चाहिए। इनके स्थान पर उनमें खिलौनों, किताबों और घर में कुछ रोचक खेल खेलने की आदत डालनी चाहिए।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

विश्व स्वास्थ्य दिवस'- 7 अप्रैल*

*'विश्व स्वास्थ्य दिवस'- 7 अप्रैल* 
आज जब कोरोना ने सारी दुनिया को घुटने पर ला खड़ा किया है, राष्ट्रों के सामने जीने की चुनौतियाँ मुँह बाए खड़ी हैं, इंसान खौफ के तले जी रहा है, चारों तरफ भय और संत्रास का माहौल है, ऐसे में आज *विश्व स्वास्थ्य दिवस* का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
 पिछले 71 वर्षों से हम लगातार 7 अप्रैल को *विश्व स्वास्थ्य दिवस* मनाते चले आ रहे हैं। वस्तुतः 7 अप्रैल 1948 को विश्व स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशिष्ट संस्था के रूप में 'विश्व स्वास्थ्य संगठन'  की स्थापना हुई। इसीलिए स्वास्थ्य की विकट चुनौतियों को समर्पित 7 अप्रैल को प्रत्येक वर्ष 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है।आइए, जानते है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस दिवस को मनाए जाने के पीछे आखिर उद्देश्य क्या हैं-
1. दुनिया भर में स्वास्थ्य की देखभाल के लिए सुविधाओं के प्रति सभी देशों में समानता के साथ जागरूकता फैलाना 2.स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार के मिथक, अफवाह और भ्रमों का निवारण करना
3.साथ ही विश्व की स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर विचार करके उनका समुचित  समाधान प्रस्तुत करना।
क्या आप जानते हैं कि सन 2021 में *'विश्व स्वास्थ्य दिवस* ' की थीम क्या रखी गई है?
नहीं। तो चलो हम बात देते हैं। ' *एक निष्पक्ष और स्वस्थ दुनिया का निर्माण'*यही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद दुनिया स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से जूझ रही है। एक के बाद एक और हर एक पहले वाली से ज्यादा खतरनाक जानलेवा बीमारियाँ महामारी का रुप धारण कर इंसान की परीक्षा लेने को उतारूँ हो रही हैं। कभी एडस ने डराया तो, कभी स्वाइन फ्लू ने नाक में दम की और अब कोरोना ने तो दुनिया के किसी कोने को छोड़ा ही नहीं, पर आत्मजयी मनुष्य का भी कोई जवाब नहीं, इस वैश्विक महामारी से बराबरी का मुकाबला किया जा रहा है और अपने जुझारू कालजयी मंसूबों को शिद्दत के साथ प्रस्तुत कर रहा है।
आज का यह ' *विश्व स्वास्थ्य दिवस'* मानव के इसी अविजित भाव और स्वभाव को जीवंत बनाए रखने का अपराजित प्रयास है।
आइए, शुद्ध बुद्ध प्रज्ञा के साथ शपथ लेते हैं कि हम सबसे पहले स्वयं को स्वस्थ रखेंगे, फिर अपने परिवार को स्वास्थ्य  समस्याओं के प्रति जागरूक रखेंगे, तो समाज स्वस्थ बनेगा और जब समाज स्वस्थ होगा, तो निरोगी राष्ट्रों का आर्विभाव होगा और विश्व की सकल मानवता के लिए सुस्वास्थ्य का विहंगम पढ़ प्रशस्त होगा ही होगा।

डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

सार्वजनिक स्वास्थ्य में होम्योपैथी का बढ़ता दायरा* (10 अप्रैल को 'विश्व होम्योपैथी दिवस')

*सार्वजनिक स्वास्थ्य में होम्योपैथी का बढ़ता दायरा* 
(10 अप्रैल को 'विश्व होम्योपैथी दिवस')

आज 10 अप्रैल है, जी हाँ, सब जानते हैं, कि आज की तारीख 10 अप्रैल है। 9 अप्रैल के बाद दस ही आती है जनाब, पर क्या खास बात है, आज के इस दिन में?

आइए, जानते हैं। 
आज, 10 अप्रैल को 'विश्व होम्योपैथी दिवस' मनाया जाता है। यह दिवस होम्योपैथी के जनक जर्मनी में जन्में
होम्योपैथी के पितामह डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुएल हैनीमैन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उनका जन्म 1755 में जर्मनी के मीसेन नामक शहर में हुआ था। वे केवल डॉक्टर ही नहीं थे, डॉक्टर होने के साथ-साथ एक महान शोधकर्ता, भाषाविद और उत्कृष्ट वैज्ञानिक भी थे। 

होम्योपैथी यूनानी शब्द है ?  यह दो शब्दों से मिलकर बना है- 'होमो' अर्थात 'समान' दूसरा शब्द है-'पैथॉस', जिसका अर्थ है 'बीमारी'। केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अनुसार  होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति "समः समम शमयति" अर्थात समरूपता के सिद्धांत पर काम करती हैं। डॉ. हैनिमैन का ध्यान एक बार डॉ॰ कलेन के कुनैन के बारे में कहे गए वक्तव्य पर गया कि  ‘’यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है।"
बस यही वक्तव्य हैनिमैन की होमियोपैथी चिकित्सा पद्घति की खोज का मूल बन गया। वस्तुतः होम्योपैथी वह चिकित्सा पद्धति है, जो इस विश्वास पर आधारित है कि हमारी बॉडी खुद को खुद ही ठीक कर सकती है। यह हमारी प्राकृतिक  रोग प्रतिरोधक सुरक्षा प्रणाली  को तेज कर, मजबूत बनाती है। 

इस पद्धति में मरीजों का इलाज होलिस्टिक दृष्टिकोण के माध्यम से नहीं, बल्कि मरीज की व्यक्तिगत विशेषता, उसकी आदतें,  उसका स्वभाव और प्रकृति को समझकर किया जाता है।  होम्योपैथिक की दवाई प्रभावी तो होती ही हैं, साथ  मीठी मीठी गोलियों में मिला कर दी जाती है, जिससे लोग इनका सेवन आसानी से कर सकते हैं, यहां तक कि बच्चे भी रुचिपूर्वक कर ले लेते हैं। और एक अत्यावश्यक बात, आपकी जेब पर बिल्कुल भी भारी नहीं, लागत भी बहुत ही कम होती है।

हाँ, यह जरूर है कि इन दवाओं का असर धीरे-धीरे होता है, लेकिन माना जाता है कि यह रोगों को जड़ से दूर कर देता है और सबसे खास बात तो यह है, कि होम्योपैथी की दवा का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। ज्यादा नहीं पर तेज महक वाली वस्तुएं जैसे अदरक,लहसन आदि से परहेज करना जरूरी है। प्रैक्टो पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार "हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में तथा दिल की बीमारी की रोकथाम और मेमोरी को बढ़ाने में होम्योपैथी की दवाएं बहुत ही कारगर सिद्ध हुई है।

आज  दुनिया के 100 से भी ज्यादा देशों में मरीजों का इलाज होम्योपैथी विधि से सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इसकी  मितव्ययिता, लोकप्रियता और उपयोगिता को देखते हुए, प्रतिवर्ष 'विश्व होम्योपैथी दिवस' पर कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन होता है। 
विश्व समुदाय में इस चिकित्सा पद्धति के बारे में भविष्य की रणनीतियों और आने वाली चुनौतियों को स्वीकार कर गहन शोध आदि के प्रति जागरूकता लाना इस दिवस का परम उद्देश्य है, ताकि वे स्वस्थ और सुखी जीवन व्यतीय कर सकें।

डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

भारत के सामाजिक और राजनीतिक विरासत के अमूल्य रत्न-अंबेडकर*

*भारत के सामाजिक और राजनीतिक विरासत के अमूल्य रत्न-अंबेडकर* 

डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत के सामाजिक और राजनीतिक विरासत के ऐसे अमूल्य रत्न हैं, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे स्वतंत्रता के पश्चात भारत के अखिल राजनैतिक और सामाजिक स्पेक्ट्रम में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सम्मानित व्यक्ति रहे है।
भारतीय राजनीति में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की सबसे स्थायी विरासत संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका है, जो भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सुनिश्चित किया कि दस्तावेज में न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित हों।
इसके अलावा बाबासाहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। केंद्रीय बैंक का गठन हिल्टन यंग कमीशन को बाबासाहेब द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था।
साहित्य और लेखन: डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर एक विपुल लेखक थे, तथा कानून, अर्थशास्त्र, धर्म और सामाजिक मुद्दों पर उनके कार्य अत्यधिक प्रभावशाली बने हुए हैं। उनकी पुस्तकें, जैसे “अस्पृश्यता का विनाश”, “शूद्र कौन थे?” एवं “बुद्ध और उनका धम्म”, दुनिया भर के पाठकों को के लिए आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जीवन सतत संघर्ष और सफलता का ऐसा मणिकांचन संयोग है, जो आगत और नवागत पीढ़ियों के लिए सदा ही प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। 
डॉ भीमराव ने अपने जीवन में बहुत से कष्ट सहे, लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी शिक्षा से समझौता नहीं किया। वे हर दिन लगभग 18 घंटे अध्ययन किया करते थे। शिक्षा के प्रति उनकी रूचि और कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि बड़ौदा के तत्कालीन महाराज ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान कर, लंदन पढ़ने के लिए भेजा। डॉ. अंबेडकर गौतम बुद्ध, संत कबीर और महात्मा ज्योतिबा फुले को अपना गुरु मानते थे और उनके तीन देवता थे- ज्ञान, स्वाभिमान और शील। बाबासाहेब को पुस्तकें पढ़ने का बहुत ही शौक था। उनकी अपनी एक लाइब्रेरी थी, जो दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाइब्रेरी मानी जाती थी। इसमें उस समय लगभग 50,000 से अधिक किताबें थीं। आपको एक ऐसी बात बताती हूँ, जिस पर आप गर्व किए बिना रह ही नहीं पाएंगे-
2004 मेंअमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के 200 वर्ष पूरे होने के होने के उपलक्ष्य में एक महाआयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने विद्यालय में अध्ययन कर चुके शीर्ष 100  बुद्धिमान विद्यार्थियों का चयन कर उन्हें 'Colmbian Ahead Of Their Times'  नामक अवार्ड देने के लिए जो सूची तैयार की, उसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम पहले नंबर पर था। अंबेडकर को 'सबसे अधिक बुद्धिमान विद्यार्थी', यानि 'First Colmbian Ahead Of Their Times'  के रूप में मरणोपरांत सम्मानित किया गया। सन 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। 
14 अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है।  भारत सरकार द्वारा बाबा साहेब को श्रद्धांजलि देते हुए उनके जीवन से जुड़े पाँच महत्वपूर्ण स्थानों को पंच तीर्थ के रुप मे विकसित किया गया है । इसमें प्रथम मध्यप्रदेश में जन्मभूमि महू, जहाँ बाबा साहेब का जन्म हुआ, उनके जन्म स्थली के रूप में विकसित किया गया है। दूसरा शिक्षा भूमि, लंदन का वह घर जहाँ बाबा साहेब ने रह कर वकालत की शिक्षा ली, तीसरा दीक्षा भूमि, नागपुर जहां बाबा साहब ने 1956 में अपने छह लाख अनुयायियों  के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया, चौथी दिल्ली के अलीपुर में महापरिनिर्वाण भूमि, वो घर जहाँ बाबा साहेब ने अंतिम सांस ली ,पांचवां मुम्बई की चैत्य भूमि, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया था।  इन स्थानों को भारत सरकार ने संविधान निर्माता के स्मृति के रूप में विकसित कर पांच तीर्थ की स्थापना की है।
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि को पूरे देश में ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
ऐसे बिरले व्यक्तित्व के धनी जुझारू बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर आइए, संकल्प लें- 
"घनी अंधियारी रातों में ही,
बिजलियाँ चमकी हैं।
सर के परे निकला जब पानी 
बदलियां बरसी हैं।
यह सुना और देखभाला
अनुभवजन्य सत्य है।
ख़ुद फूटे और धरती चीरी,
तब बीज से फसलें उपजी है।"

डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

21 अप्रैल,'सिविल सेवा दिवस'*

*21 अप्रैल,'सिविल सेवा दिवस'* 
'सिविल सेवा' किसी भी देश के प्रशासनिक तंत्र की रीड की हड्डी मानी जाती है।  भारतीय संसदीय लोकतंत्र में भी संविधान द्वारा निर्धारित कार्यकारी निर्णय इन सिविल सेवकों द्वारा ही कार्यान्वित किए जाते हैं। 
आज ही के दिन, 21 अप्रैल 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं का उद्घाटन करते हुए, भारतीय लोक सेवा के पहले दल को 'स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया' के नाम से संबोधित किया था। स्वतंत्र भारत में सन 1950 से सिविल सेवाएं परीक्षाएं प्रारंभ हुई तथा 2006 से नियमित रूप से हर वर्ष 'सिविल सेवा दिवस' मनाया जाने लगा इसका उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के सदस्यों को नागरिकों के लिए समर्पित और वचनबद्ध कार्यों के लिए प्रेरित करना है। इन सिविल सेवकों के पास पारंपरिक और सांविधिक दायित्व भी होते हैं, जो कि कुछ हद तक सत्ता में किसी राजनीतिक पार्टी को अपनी राजनीतिक शक्ति का अनुचित लाभ उठाने एवं उसका निजी हित में इस्तेमाल करने से बचाता है। इस अवसर पर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा उत्कृष्ट सिविल सेवा देने वाले अधिकारियों को प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाता है।


आज इस गौरवपूर्ण दिवस पर मैं आपको जीवट और संघर्ष की प्रतीक बन कर उभरी उस लौह महिला की कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो भारत की पहली आई.ए.एस. महिला थी। ...सुनेंगे?
...तो यह पॉडकास्ट आपके लिए ही है-

इसे सम्मान दो थोड़ा तो ये इतिहास बना लेगी
करो विश्वास इनपर पूरा विश्वास पा लेगी
कभी जीवन में  इनको नज़रअंदाज़ मत करना
जरा से पंख खोलोगे ये आकाश सजा लेगी

जी हां आज मैं आपको 
17 जुलाई, 1927 को जन्म केरल के एक गांव में जन्मी उस लौह महिला की कहानी सुनाने जा रही हूं, जिसका नाम है अन्ना राजम मल्होत्रा, जो कालीकट में बड़ी हुईं और प्रोविडेंस महिला कॉलेज से अपनी मध्यवर्ती शिक्षा पूरी की। कालीकट के मालाबार ईसाई कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद, अन्ना मद्रास चली गईं जहां उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की।

ऐसे वक्त में जब ज्यादातर भारतीय महिलाएं शादी कर लेने को ही अपने युवा जीवन का उद्देश्य समझती थीं,  कलेक्टर पति     ।।।
उनमें से किसी ने भी सिविल सेवा में शामिल होने की कोशिश तो क्या कल्पना ही नहीं कीं, तब अन्ना राजम मल्होत्रा भारत की पहली महिला आईएएस अधिकारी की राह पर बढ़ी। वह सचिवालय में पद प्राप्त करने वाली भी पहली महिला थीं।  अन्ना को खूब परेशान किया गया, वो औरत थीं इसलिए उनकी काबिलियत पर हमेशा शक किया गया। यहां तक कि उनकी महिला सहकर्मी भी उनके निर्णय का मजाक उड़ाती थीं। लेकिन अन्ना ने किसी की एक न सुनी। 

मेरे होंसलों की बात न कर,
वो आसमान से भी ऊँचे हैं।
बात उस उड़ान की अब कर,
जिसे नित नए आयाम छूने हैं।

वो बस अपने राह चलती रहीं। एक दिन उन्होंने इतिहास रच ही दिया। उन्होंने 1950 में सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास की थी। उनकी प्रतिभा के बावजूद पैनल ने उन्हें फॉरेन सर्विसेज या फिर सेंट्रल सर्विसेज ज्वॉइन करने की सलाह दे डाली, सिर्फ इसलिए कि उनके हिसाब से ये क्षेत्र महिलाओं के लिए ज्यादा मुफीद थे। लेकिन अन्ना वहां भी नहीं झुकीं। 

मेरे होंसले हठीले,
कब कहाँ किसकी वो सुनते हैं।
फ़लक पर जा बैठे,
और धरती को एकटक तकते हैं।

उनके अपॉइंटमेंट पर उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री सी राजगोपालाचारी ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट सब कलेक्टर बनाने की बजाय सीधे सचिवालय में नियुक्त कर दिया। 
अन्ना केवल पढ़ाई में ही स्ट्रॉन्ग नहीं थीं बल्कि उन्होंने रायफल, पिस्टल शूटिंग, घुड़सवारी में भी फुल ट्रेन्ड थीं। वो चाहती थीं कि वो किसी भी तरह अपने पुरुष सहकर्मियों से कमतर न रहें। लैंगिक भेदभाव किस कदर हावी था, ये बताता है अन्ना को दिया गया एक एग्रीमेंट। जिसमें लिखा था कि अन्ना सर्विस के दौरान शादी नहीं कर सकतीं, अगर वो शादी करती हैं तो सर्विस टर्मिनेट हो जाएगी। ऐसा कोई नियम पुरुषों के लिए नहीं था, केवल महिलाओं के लिए ही ये बाधा बना दी गई थी। हालांकि कुछ सालों बाद ये नियम हटा लिया गया। उन्होंने  तमिलनाडु के सात मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया, बाद उन्होंने   से विवाह किया जो से तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। एना को 1989 में उत्कृष्ट सिविल सेवाओं के लिए भारत सरकार ने पदम विभूषण से सम्मानित किया।

अन्ना के नेतृत्व में देश का पहला कम्प्यूटराइज्ड कंटेनर पोर्ट बनावाया गया था। ये पोर्ट मुंबई था और जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह के नाम से जाना जाता है। 1982 में उन्होंने पंडित नेहरू को एशियाड सम्मेलन में असिस्ट भी किया था। वो इंदिरा गांधी के साथ फूड प्रोडक्शन पैटर्न को समझने के लिए आठ राज्यों की यात्रा पर भी गई थीं। बड़ी बात ये है कि उस वक्त उनका टखना टूटा हुआ था। 

घनी अंधियारी रातों में ही,
बिजलियाँ चमकी हैं।
सर के परे निकला जब पानी 
बदलियां बरसी हैं।
यह सुना और देखभाला
अनुभवजन्य सत्य है।
ख़ुद फूटे और धरती चीरी,
तब बीज से फसलें उपजी है।

एक बार क्या हुआ कि एक गांव में हाथियों का बड़ा आतंक फैल गया था। अन्ना पर दबाव था कि वो हाथियों को मारने का आदेश दे दें। लेकिन अन्ना कैसे निरीह जानवरों की हत्या करवा सकती थीं। हाथियों की तो गलती केवल इतनी थी कि वो अपने घर अर्थात जंगलों में मनुष्यों की  बेजां  दखलंदाजी से तंग आकर बाहर बस्तियों में आ गए थे। अन्ना ने बड़ी ही सूझबूझ और अपने जीव व्यवहार के ज्ञान से उनको वापस जंगल भेज दिया था। उनके कारनामे से हर कोई हैरानी में था। 

 अपने करियर के दौरान, अन्ना राजाम मल्होत्रा ने साबित कर दिया कि वो इस सफलता के लिए हर तरह से योग्य थीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि लैंगिक भेदभाव का  समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिये। उनकी जीवनशैली दिखाती हैं कि महिलाओं को अवसरों की जरूरत है, संरक्षण नहीं।

मीरा की अमर भक्ति ज़हर से मर नहीं सकती
झाँसी वाली रानी है किसी से डर नहीं सकती
मदर टेरेसा, या हो कल्पना या सानिया चाहे मेरी कॉम हो
असम्भव क्या है दुनियां में जो नारी कर नहीं सकती

उन्होंने राजनीतिक शख्सियत बनने से इनकार कर दिया और भारत के कुछ सबसे शक्तिशाली नेताओं के सामने भी कभी नहीं झुकीं। उनका ये व्यवहार देश के तमाम नौकरशाहों के सामने एक उदाहरण रखता है।
डॉ. मधु गुप्ता,
सह-आचार्य,
हिंदी विभाग।

'ब्लॉग'- मेरे बाद भी मुझे जिंदा रखेगा।


भारत ही नहीं, विश्व का कोई भी देश हो, उसके आर्थिक, सामाजिक, कलात्मक और सांस्कृतिक विकास में कौशल का महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है। वस्तुतः मेरी दृष्टि में कौशल एक तपस्या है, एक ऐसी साधना है, जिसके द्वारा युवाओं को व्यावसायिक सशक्तता और सामर्थ्य प्रदान कर, 
आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया जा सकता है। देश काल के अनुरूप दिए गए इस प्रशिक्षण के माध्यम से न केवल युवाओं के जीवन में वरन, विश्व संस्कृति के हर घटक में अभूतपूर्व सकारात्मक और रचनात्मक परिवर्तन के साथ, मानव सभ्यता के विकास के अनंत क्षितिज खोले जा सकते हैं-

उन अनंत क्षितिजों के प्रथम तोरण द्वार पर माहेश्वरी गर्ल्स पी. जी. कॉलेज, प्रताप नगर के ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' में आपका अन्तःस्थल से अभिनंदन।

"कौन कहता कि मौत आएगी, तो मैं मर जाऊंगी,

दरिया हूँ मैं, समन्दर में गहरे तक उतर जाऊंगी।"

क्या आपने कभी सोचा है कि कौन मुझे  मेरे मरने के बाद भी जिंदा रखेगा? आज के संदर्भ में कहूँ, तो ये ब्लॉग की दुनिया मेरी जिंदगी में तो मेरे साथ है ही, मौत के बाद भी मेरा नाम और काम रहेगा ही रहेगा। ब्लॉग लेखन का काम करते हुए, अक्सर मुझे 'नदीम' का यह शेर याद आ जाता है। आज की यह ब्लॉग की दुनिया समंदर ही तो है, जिसमें मेरी जैसे न जाने कितने दरिया आकर समा जाते हैं। आइए, नदियों की कुछ उन धाराओं की बात करें, जो ब्लॉग के इस समंदर के सरताज़ बन गए हैं-

यदि आप ब्लॉग के बारे में जरा सा भी जानते हैं, तो आपने अमित अग्रवाल का नाम तो अवश्य सुना होगा-

अमित अग्रवाल, वो पहले भारतीय है, जिन्होंने ब्लॉगिंग कि दुनिया में अपना हाथ आज़माया और सफलता की ऊँचाइयों को स्पर्श किया। अमित अग्रवाल तकनीक के महारथी थे, और लेखन उनकी अभिरुचि थी। उन्होंने दोंनो का संगम कर, उसे एक मंच पर ला खड़ा किया। इस प्रकार वे भारत के पहले पेशेवर ब्लॉगर बन गए। उन्होंने सच्चे अर्थों में ब्लॉगिंग को व्यवसाय के रूप में स्थापित करने का महत्वाकांक्षी कदम उठाया और उस स्वप्न को साकार कर दिखाया। स्कूलिंग के बाद उन्होंने आई.आई.टी.-रुड़की से कंप्यूटर साइंस में अपनी बी.-टेक. की पढ़ाई पूरी कर, 5 साल शानदार उच्च प्रोफाइल और हाई पैकेज की नौकरी करने के पश्चात वर्ष 2004 में अपनी जन्मभूमि आगरा आकर Labnol (डिजिटल प्रेरणा) नामक एक तकनीकी ब्लॉग लॉन्च किया और आज वे करोड़ों के प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।

यूँ तो आज हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग की दुनिया में हजारों लाखों व्यक्ति अपना करियर बना रहे हैं, पर आइए, आपका एक ऐसे हिंदी साहित्यकार से परिचय करवाती हूँ, जो आज हिंदी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों में से एक माने जाते हैं-'रविन्द्र प्रभात'।

कविता के साथ-साथ 'रविन्द्र प्रभात' को व्यंग्य और ग़ज़ल लेखन के लिए प्रसिद्धि मिली पर आज उनकी पहचान  ब्लॉग लेखक के रूप में स्थापित हो चुकी है। उन्होंने ही हिन्दी ब्लॉग आलोचना का सूत्रपात किया। उन्हें हिंदी ब्लॉगिंग जगत में 'न्यू मीडिया विशेषज्ञ' के तौर पर जाना जाता है। अब तक उन्हें ब्लॉगिंग के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। ‘हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास’ लिखने वाले वे पहले भारतीय हैं। इनके ही प्रयासों से ब्लॉग साहित्यिक पुरस्कार 'परिकल्पना सम्मान' शुरू किया गया है। यह सम्मान प्रत्येक वर्ष आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन में देश-विदेश से आए जाने-माने ब्लॉगर्स की उपस्थिति में दिया जाता है। इस सम्मान को बहुचर्चित तकनीकी ब्लॉगर 'रवि रतलामी' ने ‘हिन्दी ब्लॉगिंग का ऑस्कर’ कहा है। आज साहित्यिक उत्सवों की तरह ही ‘ब्लॉगोत्सव’ के आयोजन भी शुरू हो गए हैं। इसके अंतर्गत प्रमुख रचनाकार एक मंच पर एकत्रित होकर नवागंतुक ब्लॉगर रचनाकारों को एक नया सकारात्मक संदेश दे रहे हैं। आपको भी आपकी स्वर्णिम संभावनाएं पुकार रही हैं। 

ब्लॉग'MGPGC- सृजन-संसार' छात्राओं की  ब्लॉग लेखन कला  और रचनात्मक लेखकीय कौशल क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि कर, उन्हें  प्रतिभा प्रदर्शन और धनार्जन दोंनो के लिए तैयार करेगा। 

इसी महत्ता को देखते हुए ही, महाविद्यालय की छात्राओं को ब्लॉग क्रिएशन एंड डिजाइनिंग कोर्स करवाया गया है, जिसमें ब्लॉग बनाना, डिज़ाइन करना, पोस्ट कर उसे डिज़ाइन करना, पेज और टेम्पलेट बनाकर, उन्हें डिज़ायन करने के तरीके को चित्रों और पीपीटी  के माध्यम से समझाने का एक लघु प्रयास किया गया। मुझे यह बताते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि महाविद्यालय का यह ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' उन्हीं के सद्प्रयासों का परिणाम है। वे इसे उत्तरोत्तर समृद्ध कर श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम की यात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। 

इस लघु प्रयास के मूल में प्रिंसिपल मैडम डॉ. शुभा शर्मा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सॉफ्टवेयर डेवलपर श्री नितेश ज्योतिषी ने अपनी तकनीकी सहायता देकर हमारे इस कार्य को सुगम कर दिया,  उनका हृदय से आभार। शिक्षा नवाचारों को प्राथमिकता प्रदान कर, उन्हें कार्यरूप में परिणति के लिए आवयश्क मंच उपलब्ध करवाने हेतु 'दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज, जयपुर' का अंतर्मन से साधुवाद।

डॉ.मधु गुप्ता

समन्वयक, ब्लॉग क्रिएटिंग सर्टिफिकेट कोर्स,

सह-आचार्य, माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज,

सेक्टर-5, प्रताप-नगर, जयपुर।



यह निम्नलिखित कंटेंट केवल मोड्यूल बुक में मेरे वाले मैटर में अंत में जुड़ेगा। 

बाकी मोड्यूल बुक में भी हम पांचों का यही मैटर फ़ोटो के साथ छपेगा।


आपको इस मॉड्यूल बुक में ब्लॉग- क्या, क्यों और कैसे जैसे प्रश्नों का उत्तर मिलेगा। इसमें ब्लॉग बनाना, डिज़ाइन करना, पोस्ट कर उसे डिज़ाइन करना, पेज और टेम्पलेट बनाकर, उन्हें डिज़ायन करने के तरीके को चित्रों के माध्यम से समझाने का एक लघु प्रयास किया गया है। कहीं कोई त्रुटि रह गई हो, तो आपके सुधी सुझाव मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

इस लघु प्रयास के मूल में प्रिंसिपल मैडम डॉ. शुभा शर्मा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सॉफ्टवेयर डेवलपर श्री नितेश ज्योतिषी ने अपनी तकनीकी सहायता देकर हमारे इस कार्य को सुगम कर दिया,  उनका हृदय से आभार। शिक्षा नवाचारों को प्राथमिकता प्रदान कर, उन्हें कार्यरूप में परिणति के लिए आवयश्क मंच उपलब्ध करवाने हेतु 'दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज, जयपुर' का अंतर्मन से साधुवाद।

नई शिक्षा नीति-2020- 'आशा की नई किरण'

 


'नई शिक्षा नीति-2020' भारत के शैक्षणिक इतिहास में एक नई आशा की किरण लेकर आई है। शिक्षाविदों का मानना है कि यह न केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं वरन, भारत के चहुँमुखी  विकास में महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी।  सम्माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में 'स्किल इंडिया' जैसी प्रगतिशील अवधारणा प्रस्तुत की गई है, जो भारत में बेरोजगारी को मुँहतोड़ जवाब देकर, युवा भारतीयों को व्यवसाय के विविध अवसर प्राप्त करवा रही है। 

मेरा मानना हसि कि आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा करना है, तो हमारे  लिए यह नितांत आवश्यक है कि भारत का हर युवा विविध वर्णी कौशल से संपन्न हो। वह केवल अपनी रोजी रोटी ही न कमा सके, वरन देश के आर्थिक, सामाजिक, कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने कौशल का उपयोग करते हुए, भारत को विश्व गुरु की पदवी पर स्थापित करने का संकल्प लें।

मुझे यह देख और सुन कर अतीव हर्ष की अनुभूति हो रही है कि माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज, प्रताप नगर, जयपुर ने इस परिपेक्ष्य में अपनी युवा छात्राओं को रोजगारोन्मुख शिक्षा देने का संकल्प निभाते हुए, विभिन्न 'शार्ट टर्म सर्टिफिकेट कोर्स' प्रारंभ किए हैं, जिसमें  सर्वप्रथम छात्राओं को 'ब्लॉग क्रिएशन एवं डिजाइनिंग सर्टिफिकेट कोर्स' करवाया गया, जिसके अंतर्गत महाविद्यालय की छात्रोंओं ने महाविद्यालय का अपना ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' बनाया और उस पर अपनी रचनाएँ पोस्ट की। अब आप ब्लॉग संसार से परिचित हो चुके हैं, खुद लिखेंगे दूसरों के पढ़ेंगे। ज्ञान, विज्ञान और तकनीकी के नूतन क्षितिजों को न केवल खोजेंगे, वरन अपनी अभिरुचि के अनुकूल नया संसार रच डालेंगे, साथ ही समस्त शिक्षकों ने भी अपने ब्लॉग पोस्ट कर महाविद्यालय के ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' की महत्ता में अभिवृद्धि करने का सराहनीय प्रयास किया है। मुझे आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वास है कि शीघ्र ही यह ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' बड़ी संख्या में पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में सफलता प्राप्त कर, लोकप्रियता के शिखर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाएगा। 

उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ।

कैलाश चंद्र अजमेरा,

मानद सचिव,

दी एज्युकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज(सोसायटी), जयपुर।


युवा-'आत्मनिर्भर भारत का आधार'


 माहेश्वरी गर्ल्स पी. जी. कॉलेज ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' के शुभारंभ पर हार्दिक बधाई।


व्यावसायिक शिक्षा कौशल, जो युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर, उन्हें व्यावसायिक कुशलता की ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है, का ऐसा रचनात्मक श्री गणेश मेरे लिए कल्पना से परे था, पर आपने इसे साकार कर दिखाया है। आज आपने ब्लॉग की जिस डिजिटल दुनिया में कदम रखा है, मेरा दृढ़ विश्वास है कि आप साहित्य और लेखन के विविध नवीन आयाम खोल, अपनी उत्कृष्ट और विलक्षण प्रतिभा से माहेश्वरी गर्ल्स पी. जी. कॉलेज, प्रताप नगर, जयपुर को शैक्षिक जगत के उत्तुंग शिखर पर स्थापित करेंगी।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं को प्रासंगिक रखने के लिए स्किल, रीस्किल और अपस्किल का मंत्र दिया है। इस मंत्र का उपयोग कर आप सब  युवा अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं, पर इसके लिए  कौशल विकास कार्यक्रम हमें बिल्कुल निचले स्तर से शुरू करके हर गांव, हर शहर, हर राज्य को सम्मिलित करते हुए, राष्ट्र स्तर से इसे अंतरराष्ट्रीयता तक पहुँचाना होगा, तब न केवल आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना जीवंत हो उठेगी, वरन विश्व पटल पर भारत के युवा को एक नई पहचान मिलेगी।

हम सब जानते हैं कि वर्ष 2030 तक भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा कार्यबल होगा। इसमें युवाओं की भारी संख्या होगी। युवा वर्ग को प्रशिक्षण प्रदान कर, उन्हें भविष्य के लिए यदि हमने तैयार कर दिया, तो कौशल विकास और स्किल इंडिया के नए शिलालेख गढ़ने से हमें कोई नहीं रोक पाएगा, क्योंकि यह कौशल विकास कार्यक्रम और उद्यमशीलता युवाओं को 21वीं सदी के अनुसार नवीन तकनीकी और गुणवत्ता से परिपूर्ण कर, देश के सर्वांगीण विकास में अपनी भागीदारी निभाकर, आत्मनिर्भर भारत के विज़न को एक नई दिशा प्रदान करेगा। 

दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज, जयपुर देश में औद्योगिक माँग के अनुसार कुशल मानव संसाधन तैयार कर, मांग और पूर्ति के गैप को भरने के लिए कृतसंकल्प हो, समान अवसर प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभा रहा है। आपकी यह व्यावसायिक कुशलता केवल एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी आगे बढ़ाएगी । सही अर्थों में देखा जाए, तो भविष्य में कौशल ही वह माध्यम, वह सशक्त साधन होगा, जो युवा शक्ति को आत्मनिर्भर बना कर, राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित करेगा। निश्चय ही माहेश्वरी गर्ल्स पी. जी. कॉलेज, प्रताप नगर, जयपुर भविष्य में अन्य शैक्षणिक संस्थाओं के लिए प्रेरणादायक साबित होगा। अतः कौशल विकास और उद्यमशीलता विभागों , राज्य सरकारों के प्रशिक्षण भागीदारों एवं  विभिन्न औद्योगिक इकाइयों के साथ मिलकर युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के आपके सद्प्रयासों को मैं हृदय से मंगलकामना देता हूँ। माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज, जयपुर ने राष्ट्र की भावी पीढ़ी की कर्णधार छात्राओं को शैक्षणिक और सहशैक्षणिक विकास के साथ साथ विभिन्न सर्टिफिकेट कोर्सेज के माध्यम से कुशल व्यावसायिकता का प्रशिक्षण देने का गुरुतर उत्तरदायित्व उठाया है। इसी श्रृंखला में दिनाँक 8 अप्रैल 2021 को 'ब्लॉग सर्टिफ़िकेट कोर्स' के पहले बैच का प्रशिक्षण सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। ब्लॉग की यह दुनिया न केवल छात्राओं का भाषायी संस्कार करेगी, बल्कि एक कदम और आगे बढ़ कर उनकी साहित्यिक अभिरुचि को परिष्कृत कर साहित्य सृजन कला का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इस भगीरथ प्रयास के लिए महाविद्यालय के प्रत्येक घटक का साधुवाद।

नटवर लाल अजमेरा,

महासचिव शिक्षा,

दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी, समाज(सोसायटी), जयपुर।

MGPGC- 'सृजन-संसार'- 'व्यवसायिक शिक्षा का तुमुल जयघोष'



"तरुण! विश्व की बागडोर लो, तुम अपने कौशल कर में,

स्थापित कर दो उत्कृष्टता, जन-जन के तन और मन में।

उठे देश सबके कंधों पर, करे गति प्रगति के प्रांगण में,

पृथ्वी को रख दो उठा कर, नील-गगन के आंगन में।"

महाविद्यालय के ब्लॉग- 'MGPGC- सृजन-संसार' तोरणद्वार पर शत शत अभिनंदन।

इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि युवा किसी भी देश के आधारस्तम्भ होते हैं। आज भारत एक युवा देश है। यहाँ की 65% जनसंख्या युवा है। हमारे युवाओं में वह जीवट, वह हुनर, वह सामर्थ्य है, जिसके बल पर भारत को विश्व की कौशल विकास की विशाल प्रयोगशाला बनाया जा सकता है और तब विश्व पटल पर भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में उत्कीर्ण कर, एक बार फिर से इसे सोने की चिड़िया बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। बस शर्त एक ही है, कि माननीय प्रधानमंत्री के 'लोकल को वोकल' मंत्र का अनुसरण कर हमें स्थानीय स्तर पर स्किल की पहचान कर, युवाओं को स्थानीय स्तर पर ही प्रशिक्षित करना होगा तथा उन्हें स्थानीय स्तर पर ही विभिन्न स्वरोजगार, लघु इकाइयों और वृहद उत्पादक यूनिट से जोड़ कर, आजीविका के स्थाई अवसर अधिक से अधिक सृजित करने होंगे।

मुझे यह कहते हुए अत्यंत हर्ष एवं गर्व की अनुभूति हो रही है कि माहेश्वरी गर्ल्स पी. जी. कॉलेज, प्रताप नगर, जयपुर ने कौशल भारत की इस दहलीज़ पर 'ब्लॉग क्रिएशन एवं डिजाइनिंग सर्टिफिकेट कोर्स' के साथ अपना पहला अंगद कदम रख कर, व्यवसायिक शिक्षा का तुमुल जयघोष कर दिया है। कॉलेज का यह ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' युवा छात्राओं के भाषायी कौशल और संस्कार को परिमार्जित कर उत्कृष्टता के उच्च स्तर तक पहुँचाएगा।

आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए महाविद्यालय युवा छात्राओं के लिए शार्ट टर्म कोर्सेज के असंख्य विकल्प रख 'कुशल भारत' के इस महत्वाकांक्षी मिशन में अपने कर्म की आहुति पूरे प्राण प्रण से अर्पित कर रहा है।

मेरा सभी राष्ट्र निर्माता शिक्षकों से अनुरोध है, कि वह अपना दृष्टिकोण  'नवीन शिक्षा नीति -2020' के अनुसार बदल कर कुशल भारत के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने की दिशा में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करें।

मैं आप सभी युवा छात्राओं को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि हमारा एक मात्र उद्देश्य कलात्मक, डिजिटल, प्रौद्योगिकी और डिजिटल विनिर्माण आदि कौशलों का विकास कर, आपमें से हर एक को राष्ट्रीय कौशल मिशन से जोड़ते हुए, राष्ट्र की पहली पंक्ति में ला खड़ा करना है। 21वीं सदी के नए भारत की नींव रखी जा चुकी है। हम उस पर कौशल भारत की एक मजबूत इमारत स्थापित करें। मेरा आप सबसे इतना ही अनुरोध है कि अपनी सामर्थ्य और अपने कौशल को एक्स्प्लोर कर अपनी आवश्यकता और रुचि अनुसार विभिन्न कौशलों में स्वयं को पारंगत करें और 'स्किल इंडिया मिशन' को सफल बनाएं।  वस्तुतःआप ही तो इंडिया है और आपसे ही इंडिया है। अतः यह मिशन आपका है, आपके लिए ही है और आपके द्वारा ही संचालित है।

हमारे महाविद्यालय के समर्पित और अनुभवी शिक्षकों और युवा छात्राओं ने अपने सामर्थ्य और कुशलता का परिचय देते हुए, कॉलेज का अपना ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' प्रारम्भ किया है, इसके लिए अन्तःस्थल से  ढेरों शुभकामनाएं।

 मुझे हर्ष है कि आप नवाचार के क्षेत्र में अनेक नए प्रयोग करते हुए, भविष्य की उज्ज्वल संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं और करती रहेंगी। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि इस ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार' के माध्यम से आप अपनी लेखनी को तेज धार प्रदान कर, साहित्य के क्षेत्र में नई पहचान बना पाएँगी। दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज, जयपुर सदा आपके साथ था, है और रहेगा।

इसी घनीभूत आशा और सुदृढ़ विश्वास के साथ हार्दिक शुभकामनाएँ।

प्रदीप बाहेती

चेयरमैन,

दी एजुकेशन कमेटी ऑव माहेश्वरी समाज(सोसायटी), जयपुर


ब्लॉग-'असीम संभावनाओं का द्वार'


भारत को विश्व पटल पर 'कौशल राजधानी' के रूप में स्थापित करने के लिए 'कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय' ने दुनिया भर में कुशल भारतीय युवाओं को मान्यता दिलवाने की खातिर 'कौशल विकास कार्यक्रम' का आह्वान किया है। इसी परिपेक्ष्य में 'नवीन शिक्षा नीति 2020' में तमाम विश्विद्यालयों और महाविद्यालयों को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि वे शिक्षा को रोजगार से जोड़ें। 'नवीन शिक्षा नीति- 2020' का सफल क्रियान्वयन कर,  देश, प्रदेश, विदेश की कुशल औद्योगिक मानव संसाधनों की मांग की पूर्ति कर, भारतीय युवाओं को राष्ट्र विकास की  मुख्य धारा में लाना ही माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज, प्रताप नगर, जयपुर का  एकमात्र उद्देश्य है। इसी उद्देश्य पूर्ति की राह में हमारा पहला नन्हा कदम यह ब्लॉग 'MGPC- सृजन-संसार' है।

आज ब्लॉगिंग को साहित्यिक विधा का दर्जा नहीं दिया जा रहा है, पर वह दिन दूर नहीं, जब ब्लॉगिंग को साहित्य के क्षेत्र में एक सम्मानजनक और उच्च दर्जा प्राप्त होगा, क्योंकि यह विचारों को प्रस्तुत करने का नवीनतम माध्यम है। इसीलिए महाविद्यालय प्रशासन ने छात्राओं और फैकल्टी दोनों के लिए 'ब्लॉग क्रिएशन सर्टिफिकेट कोर्स' का शुभारम्भ का निर्णय लिया है। 

बच्चों, यह कोर्स उस टेक्निकल दुनिया की तरफ आपका पहला कदम है, जहाँ से आपको अपने स्वर्णिम भविष्य का विशाल आसमान दिखाई देने लगेगा। यह कोर्स ब्लॉग की दुनिया का वह द्वार है, जहाँ से आपको व्यवसाय और जीवन की असीमित संभावनाएँ नज़र आएंगी।

वस्तुतः साहित्यिक विचार हों, या सामाजिक चर्चाएं,  सांस्कृतिक सरोकार हों या वैज्ञानिक प्रगति, खेलकूद से संबंधित ब्यौरे हों या शिक्षा और ज्ञान का भंडार, संस्कारों की बात हो या नैतिकता का विषय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का क्षितिज हो या आर्थिक परिदृश्य, आप अपनी अभिरुचि के अनुरूप हर बिंदु पर ब्लॉग लिख कर दुनिया के कोने कोने में पहुँच सकते हैं। इस बात में रत्ती भर भी अतिशयोक्ति नहीं कि आज ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा अधुनातन माध्यम है, जो अन्य सभी माध्यमों में सर्वाधिक सशक्त माध्यम के रूप में उभर कर आ रहा है। वस्तुतः ”ब्लॉग एक ऐसी ऑनलाइन जगह है, जहाँ आप अपने विचारों को लेखों, चित्रों और फ़ोटो के माध्यम से इन्टरनेट पर प्रकाशित कर सकते हैं। |"

अभी आप उम्र की बढ़ती उस दहलीज़ पर खड़े हैं, जहाँ से कोई लंबी चौड़ी बातें नहीं, बस सीधी सादी भाषा में ब्लॉग पर आप अपनी  पिकनिक या किसी व्यक्ति का वृतांत, कोई आँखों देखी घटना या दिल को छू जाने वाले कोई दृश्य के विषय में लिख सकते हैं। आप अपने ज्ञान और अनुभव से जुड़ी रचनाओं को अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर सकते हैं-जैसे मैथ्स के टिप्स, विज्ञान के डायग्राम, केमिस्ट्री फिजिक्स के पेचीदा सवाल, आर्ट ऑफ क्राफ्ट के नमूने , पाक शास्त्र का कोई नायाब हुनर, अपनी कहानी, कविता, यात्रा वृतांत, रिपोर्ट, संस्मरण, स्वास्थ्य और आहार से संबंधित जानकारी, कोई मोबाइल टिप्स या कोई टेक्नोलॉजी के नए अपडेट, कुछ भी, जो आप सबसे बाँटना चाहते हैं, आज लोग ब्लॉग पर लिखकर न केवल पैसा कमा रहे हैं, साथ ही लोकप्रियता के साथ जरूरतमंदों की सेवा भी कर रहे हैं।

इस ' ब्लॉग 'MGPGC- सृजन-संसार'  में अपनी भागीदारी निभाकर आप भी उनमें से एक हो सकते हैं। 

"परिन्दें ने एक उड़ान भर ली हैं, 

पंखों का इम्तिहान बाकी है।

जीती हैं बस चंद पहाड़ियाँ, 

अनंत आसमान अभी बाकी हैं।"

यह तो आगाज़ है, आगे आगे देखिए होता है क्या?

आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ-

प्रो. (डॉ.) शुभा शर्मा,

प्रिंसिपल, माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज,

सेक्टर-5, प्रताप-नगर, जयपुर।

विश्व व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस'* (29 अप्रैल)

' *विश्व व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य दिवस'* (29 अप्रैल)
संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट एजेंसी 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन' द्वारा 28 अप्रैल 2002 में कार्यस्थल पर सेवाकर्मियों की व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य की रक्षा के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान शुरू किया था। इसीलिए यह दिवस 'वर्ल्ड सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क' के लिए समर्पित है। 
आज कोरोना की वैश्विक महामारी की दूसरी लहर से सारा विश्व जूझ रहा है। यद्यपि अधिकांश लोग लॉकडाउन एवं सख्त कर्फ्यू के कारण घर में बैठे हैं,और कुछ लोग work-from-home कर रहे हैं, लेकिन अति आवश्यक सेवाओं वाले सेवाकर्मी एवं श्रमिक मजदूरों को अपने कार्यस्थल पर आपात सेवाएं देने के लिए जाना ही पड़ रहा है। ऐसे में आज के 'विश्व व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य दिवस' के अवसर पर हमारी ऐसे सभी कोरोना योद्धाओं से अपील है कि वे अपनी सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखें- 1.अपने हाथ बार-बार साबुन से धोएं।
2.डबल फेस मास्क एवं फ़ेसशील्ड का प्रयोग करें।
3.सोशल डिस्टेंसिंग के साथ अपने काम को अंजाम दें।
4.अपने कार्यस्थल को सेनिटाइज़ करवाएं।
5.पौष्टिक और शारीरिक क्षमता को बढ़ाने वाले आहार को अपने भोजन में स्थान दें।
6.आवश्यक योग और एक्सरसाइज नियमित रूप से करें,जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता उच्च स्तर की बनी रहे। 
7.आप भयमुक्त रहते हुए, रचनात्मक और सकारात्मक सोच रखें। आप सुरक्षा की वह अग्रिम पंक्ति हैं, जो देश की जनता की रक्षा का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यदि कोरोना ने आपकी सुरक्षा पंक्ति में सेंध लगा दी, तो मानव जाति का पर एक भयानक संकट आ खड़ा होगा। हमारी इस दिवस पर आप सबके लिए हार्दिक शुभकामनाएं हैं कि आप स्वस्थ रहें और सुरक्षित रहे।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

26 अप्रैल- विश्व बौद्धिक संपदा दिवस

*विपो*  *(WIPO)* अर्थात *'विश्व इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन'* संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे पुरानी विशिष्ट एजेंसियों में से एक है। इसकी स्थापना 26 अप्रैल 1967 को हुई थी तथा यह विशिष्ट एजेंसी 1974 में संयुक्त राष्ट्र संघ का अंग बनी। भारत 1975 में ही 'बौद्धिक संपदा संगठन' का सदस्य बन गया था।  सन 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाने की घोषणा की,  तब से प्रत्येक वर्ष *विश्व बौद्धिक संपदा संगठन* द्वारा विश्व स्तर पर *बौद्धिक संपदा दिवस* मनाया जाता है। आज दुनिया के *188* देश इसके सदस्य हैँ।
 *उद्देश्य-* 

किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सृजित कोई रचना, संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, नाम अथवा डिजाइन आदि, उस व्यक्ति अथवा संस्था की *‘बौद्धिक संपदा’* कहलाती है। व्यक्ति अथवा संस्था को अपनी इन कृतियों पर प्राप्त अधिकार को ‘ *बौद्धिक संपदा अधिकार'* कहा जाता है।
 *विश्व बौद्धिक संपदा दिवस*  बौद्धिक संपदा अधिकारों (पेटेंट, ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिजाइन, कॉपीराइट) की भूमिका के बारे में जागरुकता फैलाने तथा नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। 
' *यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ग्लोबल इनोवेशन पॉलिसी सेंटर'* द्वारा प्रतिवर्ष  *'अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक'* जारी किया जाता है।  53 वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्यांकन कर हाल ही में मार्च, 2021 में जारी *'अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सूचकांक- 2021'* में भारत को 40 वें स्थान पर रखा गया है। भारत ने 100 में से 38.4 अंक प्राप्त किए।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

18 अप्रैल - विश्व धरोहर दिवस

18 अप्रैल - विश्व धरोहर दिवस

संसार भर में 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। विश्व विरासत दिवस मनाने का उद्देश्य विश्व की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक विरासत को इसके मूल रूप में संरक्षित करना और इसके प्रति लोगों को जागरूक करना है। 
आज हम ज्ञान विज्ञान और कला संस्कृति की जिस उत्तुंग शिखर पर बैठे हैं, उसके पीछे हमारे पूर्वजों की छोड़ी हुई अतुलित और समृद्ध विरासत की एक लंबी और समृद्ध  कहानी है।
वस्तुतः विरासत हमारे पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई वह संपदा है, जो उन्होंने अपने पुरखों से पाई और फिर उसे परिमार्जित और परिवर्धित करके अपनी आगामी पीढ़ी को सौंप दिया। इस प्रकार विरासत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती जाती है।   
विरासत  की इस संपदा को हम कई स्तरों पर रेखांकित कर सकते हैं जैसे- 
सांस्कृतिक विरासत ,: ज्ञान, विज्ञान, रीति, रिवाज, धर्म, दर्शन, संस्कृति, भाषा, साहित्य, संगीत, नृत्य, कला, भवन,अभिलेख, सिक्के, रहन,सहन, खान,पान आदि.
प्राकृतिक विरासत : पर्वत, भूमि, नदी, समुद्र, खनिज, मौसम, पशु, पक्षी, धरती, आसमान आदि.
आज 'विश्व विरासत दिवस' पर आइए, संकल्प लें कि इस संपदा की सुरक्षा का उत्तरदायित्व केवल सरकार का नहीं, हमारा अपना भी है। हम स्वयं इसके संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।  
यह विरासत हमारी पहचान है। अतः मेरा आप सबसे निवेदन है कि आप अपने प्राचीन स्मारकों को साफ सुथरा रखें, उनके सौंदर्य को जरा सी भी आंच न आने दे, इसके साथ ही हम हमारे चारों तरफ स्थित अज्ञात स्मारक स्थलों को पहचान कर, उन्हें सूचीबद्ध कर सरकार तक पहुंचा कर अपना कर्त्तव्य अदा कर सकते हैं। 

गहरी नजर और चौकसी रखनी होगी हमें अपने अनमोल विरासत पर। देखो कोई इसे चुरा न ले जाए,किसी की नापाक नज़र न पड़ जाए इस पर, इसके मूल स्वरूप से खिलवाड़ न कर दे।  तालाब, नदियों, झरनों और समुद्रों को प्रदूषण से बचाना होगा, आकाश और जमीन को लालची मंसूबों की हवा नहीं लगने देनी है, वन संपदा को सुरक्षित करना होगा, पर्वतों की शुभ्रता, सौंदर्य और शांति को अक्षुण्य रखना होगा, उनकी शांति को भंग नहीं होने देना है। वन्य पशु पक्षियों को जीवित रख, उन्हें अभय देना होगा।
बस इतना कर लिया तो मान लीजिए, आज हमने विश्व विरासत दिवस को सच्चे मायनों में जी लिया।
डॉ. मधु गुप्ता
सह-आचार्य, हिंदी विभागाध्यक्ष।

ब्लॉग -असीम संभावनाओं का द्वार

  




आज ब्लॉगिंग को साहित्यिक विधा का दर्जा नहीं दिया गया जा रहा है, पर वह दिन दूर नहीं, जब ब्लॉगिंग को साहित्य के क्षेत्र में एक सम्मानजनक और उच्च दर्जा प्राप्त होगा, क्योंकि यह विचारों को प्रस्तुत करने का नवीनतम माध्यम है।


साहित्यिक विचार हों, या सामाजिक चर्चाएं,  सांस्कृतिक सरोकार हों या वैज्ञानिक प्रगति, खेलकूद से संबंधित ब्यौरे हों या शिक्षा और ज्ञान का भंडार, संस्कारों की बात हो या नैतिकता का विषय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का क्षितिज हो या आर्थिक परिदृश्य, आप अपनी अभिरुचि के अनुरूप हर बिंदु पर ब्लॉग लिख कर, दुनिया के कोने कोने में पहुँच सकते हैं। इस बात में रत्ती भर भी अतिशयोक्ति नही कि आज ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक ऐसा अधुनातन माध्यम बन गया है, जो अन्य सभी माध्यमों मैं सर्वाधिक सशक्त माध्यम के रूप में उभर कर आ रहा है। वस्तुतः ”ब्लॉग एक ऐसी ऑनलाइन जगह है, जहाँ आप अपने विचारों को लेखों, चित्रों और फ़ोटो के माध्यम से इन्टरनेट पर प्रकाशित कर सकते हैं।"


अभी आप उम्र की बढ़ती उस दहलीज़ पर खड़े हैं, जहाँ से कोई लंबी चौड़ी बातें नहीं, बस सीधी सादी भाषा में ब्लॉग पर आप अपनी  पिकनिक या किसी व्यक्ति का वृतांत, कोई आँखों देखी घटना या दिल को छू जाने वाले कोई दृश्य के विषय में लिख सकते हैं। आप अपने ज्ञान और अनुभव से जुड़ी रचनाओं को अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर सकते हैं-जैसे मैथ्स के टिप्स, विज्ञान के डायग्राम, केमिस्ट्री फिजिक्स के पेचीदा सवाल, आर्ट ऑफ क्राफ्ट के नमूने , पाक शास्त्र का कोई नायाब हुनर, अपनी कहानी, कविता, यात्रा वृतांत, रिपोर्ट, संस्मरण, स्वास्थ्य और आहार से संबंधित जानकारी, कोई मोबाइल टिप्स या कोई टेक्नोलॉजी के नए अपडेट, कुछ भी, जो आप सबसे बाँटना चाहते हैं, आज लोग ब्लॉग पर लिखकर न केवल पैसा कमा रहे हैं, साथ ही लोकप्रियता के साथ जरूरतमंदों की सेवा भी कर रहे हैं।

इस 'ब्लॉग क्रिएशन सर्टिफिकेट कोर्स' को करने के पश्चात आप भी उनमें से एक हो सकते हैं। 

          आपके उज्जवल भविष्य की कामना के साथ।


डॉ. शुभा शर्मा

प्रिंसिपल, माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज,

सेक्टर-5, प्रताप-नगर, जयपुर।

ब्लॉग-मुझे मेरे बाद भी मुझे ज़िंदा रखेगा।

 



"कौन कहता कि मौत आएगी तो मैं मर जाऊंगी,

दरिया हूँ मैं समन्दर में गहरे तक उतर जाऊंगी।"

क्या आपने कभी सोचा है कि कौन मुझे  मेरे मरने के बाद भी जिंदा रखेगा? आज के संदर्भ में कहूँ, तो ये ब्लॉग की दुनिया मेरी जिंदगी में तो मेरे साथ है ही, मौत के बाद भी मेरा नाम और काम रहेगा ही रहेगा। ब्लॉग लेखन का काम करते हुए, अक्सर मुझे 'नदीम' का यह शेर याद आ जाता है। आज की यह ब्लॉग की दुनिया समंदर ही तो है, जिसमें मेरी जैसी न जाने कितने दरिया आकर समा जाते हैं। आइए, नदियों की कुछ उन धाराओं की बात करें, जो ब्लॉग के इस समंदर के सरताज़ बन गए हैं-

यदि आप ब्लॉग के बारे में जरा सा भी जानते हैं, तो आपने अमित अग्रवाल का नाम तो अवश्य सुना होगा-

अमित अग्रवाल वो पहले भारतीय है, जिन्होने ब्लॉगिंग कि दुनिया में अपना हाथ आज़माया और सफलता की ऊंचाइयों को स्पर्श किया। अमित अग्रवाल तकनीक के महारथी और पर लेखन उनकी अभिरुचि थी उन्होंने दोनों का संगम करा कर उसे एक मंच पर ला खड़ा किया इस प्रकार वे भारत के पहले पेशेवर ब्लॉगर बन गए। इन्होंने सच्चे अर्थों में ब्लॉगिंग को व्यवसाय के रूप में स्थापित करने का महत्वकांक्षी बीड़ा उठाया और स्वप्न को साकार कर दिखाया।। वे बचपन से ही टेक्नोलॉजी के दीवाने तो  थे ही सो स्कूलिंग के  बाद उन्होंने आईआईटी-रुड़की से कंप्यूटर साइंस मैं अपनी बी-टेक की पढ़ाई पूरी कर 5 साल शानदार उच्च प्रोफाइल और हाई पैकेज की नौकरी करने के पश्चात वर्ष 2004 में अपने जन्म भूमि आगरा आकर Labnol (डिजिटल प्रेरणा) नामक एक तकनीकी ब्लॉग लॉन्च किया और आज करोड़ों के प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।

यूँ तो आज हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग की दुनिया में हजारों लाखों व्यक्ति अपना करियर बना रहे हैं, पर आइए आपको एक ऐसे हिंदी साहित्यकार का परिचय करवाती हूँ, जो आज हिंदी के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगरों में से एक माने जाते हैं-'रविन्द्र प्रभात'।

कविता के साथ-साथ रविन्द्र प्रभात को व्यंग्य और ग़ज़ल लेखन के लिए प्रसिद्धि मिली पर आज उनकी पहचान  ब्लॉग लेखक के रूप में स्थापित हो चुकी है। उन्होंने ही हिन्दी ब्लॉग आलोचना का सूत्रपात किया है। उन्हें हिंदी ब्लॉगिंग जगत में 'न्यू मीडिया विशेषज्ञ' के तौर पर जाना जाता है। अब तक उन्हें ब्लॉगिंग के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है  ‘हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास’ लिखने वाले वे पहले भारतीय हैं। इनके ही प्रयासों से ब्लॉग साहित्यिक पुरस्कार 'परिकल्पना सम्मान' शुरू किया गया है। साल 2011 में उन्होंने 51 हिंदी ब्लॉगर्स को दिल्ली में 'परिकल्पना सम्मान' से सम्मानित कर ब्लॉगिंग को एक साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित कर ब्लॉगर्स को

नई राह दिखाई। यह सम्मान प्रत्येक वर्ष आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन में देश-विदेश से आए जाने-माने ब्लॉगर्स की उपस्थिति में दिया जाता है। इस सम्मान को बहुचर्चित तकनीकी ब्लॉगर 'रवि रतलामी' ने ‘हिन्दी ब्लॉगिंग का ऑस्कर’ कहा है। आज साहित्यिक उत्सवों की तरह ही ‘ब्लॉगोत्सव’ के आयोजन भी शुरू हो गए हैं। इसके अंतर्गत प्रमुख रचनाकार  एक मंच पर एकत्रित होकर नवागंतुक ब्लॉगर रचनाकारों को एक नया सकारात्मक संदेश दे रहे हैं। तो देरी किस बात की, तैयार हो जाइए। आपको भो आपकी स्वर्णिम संभावनाएं पुकार रही हैं।।


डॉ. मधुगुप्ता,

सह-आचार्य, हिंदी

माहेश्वरी गर्ल्स पी.जी. कॉलेज,

सेक्टर-5, प्रताप-नगर, जयपुर

MAIN BETI HUN MERI MAA KI

 मज़बूत  माँ  की  मज़बूत बेटी हूँ।                                                                                                                           गिरी  हूँ उठी हूँ  और खरी हूँ,                                                                                                                                   माँ की दुआ के सहारे ही चली हूँ  ,                                                                                                                           अपनी मेहनत से कामियाब तो हुई हूँ ,                                                                                                                   लोगो की नफ़रत से गिरी हूँ ,                                                                                                                                                                          लेकिन फिर माँ की दुआ ,                                                                                                                                        के सहारे खड़ी हूँ ,                                                                                                                                                  मैं मज़बूत माँ की                                                                                                                                                   मज़बूत बेटी हूँ।                      

                            
 शिवानी सैनी 




NEVER GIVE UP

                       IF I MADE  A MISTAKE

                            and iwould have to RETAKE

                                      do it once again

                             BUT THERE  ALSO  LAYS A PRIZE

                                               and that made me realise that

JEEVAN KE AADARSH MOOLY

                             आदर्श                                                       

  विश्व  में प्राचीन समय से लोगो को आदर्श का महत्व स्थापीत   किया जा रहा है                                       ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है                                                        


                                                   सत्यग्रह के बल से ही हिंसा को कम किया जा रहा हे                                                                                आदर्श  जीवन का मूल मंत्र  सदा जीवन उच्च विचार                                                                                                                            
रामकथा’ विश्व  के प्रत्येक  हृदय को छूती है, इसलिए नहीं कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि इसलिए कि इसमें एक आदर्श जीवन के दर्शन मिलते हैं।  विद्यार्थी जीवन के गुरू-शिष्य, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, पति-पत्नी, स्वामी-सेवक, राजा-प्रजा अथवा भाई-भाई आदि सभी रिश्तों का महत्व  राम के द्वारा प्राप्त होता हे नियमित आदर्श जीवन-दर्शन हे । राम के लिए माता-पिता के वचन क्या मायने रखते हैं यह उनके द्वारा सारे सुख-वैभव को ठुकराकर वनवास को सवीकार किया  । लक्ष्मण भी बड़े भाई की सेवा का मार्ग चुनते हे यह एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। राम-लक्ष्मण दोनों भाईयों का प्रेम ऐसा है की  उनकी आत्मा एक है। एक शिष्य के रूप में भी राम ने सदैव गुरू के आज्ञा का सम्मान किया है। मित्रता निभाते हुए कभी भी उन्होंने मित्र पर संदेह व संकोच नहीं किया और उन्होंने शत्रु की  भावना नहीं रखी चाहे शत्रु का भाई ही क्यों न हो जैसे राम का भाई विभीषण । राम ने सेना का  संगठित कर स्वावलम्बी बनाते हैं और उनकी आत्म शक्ति को बढ़ावा  देते  हैं    ASHA SWAMI                                         

suman rajawat


माहेश्वरी गर्ल्स पी जी कॉलेज  हमारा भारत कोरोना महामारी से जुझ  रहा हैं 

जिसमें लो
गो को बहुत परेसानी हो होरही है और बच्चे को भी तकलीफ़ हुई हैं 

EDUCATION MEANING BY LEGENDS .

EDUCATION is the most powerful weapon which you can use to change the world.-NELSON MANDELA                                                                                        
                                                                                                                                                 
EDUCATION is the magnifestation of perfection present already in man
 .DIVINITY is the magnifestation of the religion already in man. -swami vivekanand .                                                          
"Bahut zaroori hoti shiksha,
saare avagun dhoti siksha.
chahe jitna padh lein hum par,
kabhi na puri hoti siksha.
siksha paakar hi banate hain,
neta, afsar shikshak.
vaigyanik, yantri vyapaari,
yaa saadharan rakshak.
kartvyon ka bodh karaati,
adhikaaron ka gyan.
siksha se hi mil sakta hai,
sarvopari sammaan.
Buddhihin ko budhi deti,
agyani ko gyan.
siksha se hi ban sakta hai,
Bharat desh mahaan.''BY SHIVANI  SAINI 






SMILE IMPORTANT ON YOUR LIFE

such a beautiful word  in world  smile

smile is the best dose of all problem

every hman   life in importaont fr smile

smile  har kisi ki life buadal deta h

because smile ek rote isan ko hasa deta h  

aur kisi ke chehre par muskan lana    

MTLB  GOD  KO KHUSH KARNA H 

BY-PRIYANKA

KEEP SMILE ALWAYS EVERYONE

asha saini-school life




 school life is the best life. school ka  first  or last day same hota h.dono baar aankhon me

 aasu hote h pr dono baar wjh alag hoti h.starting me sochte h ki yrr yeh school kb khtm

 hogi,pr ab sochte h ki kash  wapis school chale.

school ke bag ka burden hi aacha tha kyoki ab to yeh  carier burden hi nhi sbhmlta.

sochti hu ki  sb phale hi fix hota . 12th tk shi tha ki ek class pass krne ke baad next

class me jana. pr ab bhut option h pr choose  nhi kr pa rhi ki what i do? 

school life hi mst thi .dosto ke sath mje krna sb kuch yaad aate h

 .teachersbaate yaadki aati h.




asha saini

DREAM OF INNOCENT GIRL

MY NAME IS TANU RAJAWAT  there is talk about dream of a simple innocent village girl . In The eyes of .she is very simple . but want to do many things  for her  family. she want do many things .she has many potentetail she bealive in hard work. 


mamta saini.


 Patchad main khilta fool

 Savan main barsata badal he maa

har dhukh shukh ko shne wala,

asi mamta ka aanchal he maa